न्यूयॉर्क : केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने रविवार को ‘रोजगारहीन आर्थिक वृद्धि’ को लेकर हो रही आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा कि पिछले पांच वर्ष में कोई बड़ा सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन ना होना, इस बात की ओर इशारा करता है कि सरकार की योजनाओं से रोजगार का सृजन हुआ है। इलाज के सिलसिले में यहां आए अरुण जेटली ने एक फरवरी को पेश अंतरिम बजट में रोजगार सृजन की बात का प्रमुखता से उल्लेख नहीं होने को उचित ठहराया।
उन्होंने कहा कि अंतरिम बजट सामान्य बजट भाषण से अलग होते हैं क्योंकि उनमें प्राय: ‘रिपोर्ट कार्ड और भविष्य की रूपरेखा’ होती है।उन्होंने कहा, “भारत में पिछले पांच साल में कोई बड़ा सामाजिक या राजनीतिक आंदोलन क्यों नहीं हुआ? अगर रोजगार नहीं मिला होता तो असंतोष का माहौल होता। वह कहां दिख रहा है?”मंत्री ने कहा कि असंतोष होने पर निवर्तमान सरकारें पहले ही चिंतित हो जाती हैं लेकिन अभी तो स्थिति यह है कि विपक्षी पार्टियां ही एकजुट हो रही हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि वे ऐसा नहीं करेंगे तो टिकेंगे ही नहीं।
जेटली ने कहा कि ऐसा नहीं है कि ‘अचानक पांच साल में भारत में उत्पादकता का स्तर (इतना) बढ़ गया है कि सभी संगठन अब आधी संख्या में कर्मचारियों से चलने लगे हैं। ऐतिहासिक साक्ष्य इसके विपरीत हैं।” अरुण जेटली की यह बात इस महत्वपूर्ण है कि हाल में कथित तौर पर लीक हुए एक आधिकारिक दस्तावेज में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2017-18 में भारत में बेरोजगारी दर 45 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गयी थी।
जेटली ने कहा कि इस बात को लेकर सवाल पूछा जा रहा है कि नोटबंदी के बाद जीडीपी कैसे बढ़ गयी।उन्होंने कहा, “मैं पहले दिन से यह कहता रहा हूं कि नोटबंदी के बाद जीडीपी बढ़ेगा। नोटबंदी के बाद की परिस्थितियों को लेकर कोई वैश्विक मॉडल उपलब्ध नहीं था, कोई अध्ययन उपलब्ध नहीं था। इसीलिए एक पूर्व प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) ने जब (जीडीपी में) दो प्रतिशत गिरावट की बात की तो हर किसी ने इसे निराशा के भविष्यवेत्ता की बात के रूप में सही मान लिया था।”
उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद लोगों को करीब करीब अपना पूरा नकद धन या भारत के कुल बैंक नोट का 86 प्रतिशत हिस्सा बैंकों में जमा कराना पड़ा। इसका मतलब था कि पहले जो नकद लेनदेन जीडीपी के आंकड़े में दर्ज नहीं होते थे वे भी जर्द हो गए। उन्होंने कहा कि पहले जब हम समानांतर अर्थव्यवस्था की बात कर रहे होते थे तो एक चिंता यह जाहिर की जाती थी कि जीडीपी के हिसाब में समानांतर अर्थव्यवस्था नहीं झलकती है।
इस लिए जब लोग लोगों को भारत की 86 प्रतिशत करेंसी बैंकों में जमा करने को मजबूर होना पड़ा तो अब वे आगे के भुगतानों के लिए चेक और क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने लगे और बैंकों के जरिए लेन-देन बढ गया।बैंकों में जमा पैसा म्यूचुअल फंड योजनाओं में पहुंचा वहां से वह गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों, भवन निर्माण, वहनखरीद और पूंजीगत सामानों की खरीद में लगा। उन्होंने कहा कि नकद धन के मालिकों की पहचान अब हो चुकी है। उन्होंने नोटबंदी का इससे पहले कोई उदाहरण नहीं था इस लिए ‘इसका असली स्वाद इसको चखने के बाद ही पता चल सकता था।’’