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बिल के घपले से हुआ घाटा : बिजली कंपनिया

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राज्यों में बिजली आपूर्ति का पूरा बिल नहीं भेजने वाली बिजली वितरक कंपनियों (डिस्कॉम्स) के भ्रष्टाचार को खत्म करने की जरूरत बताते हुए केंद्रीय ऊर्जा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आर. के. सिंह ने गुरुवार को कहा कि इस दिशा में कार्रवाई करने में विफल रहने से सबको निर्बाध रूप से बिजली की प्रदान करने की सरकार की योजना गंभीर खतरे में पड़ जाएगी।

राज्यों से आए ऊर्जा मंत्रियों के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए आर. के. सिंह ने कहा कि कई राज्यों में बिजली वितरक कंपनियों की ओर से आपूर्ति की जा रही तकरीबन 45-55 फीसदी बिजली का बिल नहीं भेजा जाता है और इस घाटे को दूर करने के लिए केंद्र की ओर से जल्द ही प्रीपेड यानी पूर्व भुगतान और स्मार्ट मीटरिंग को अनिवार्य बनाने की व्यवस्था शुरू की जाएगी।

उन्होंने कहा, ‘हमारी अक्षमताओं की मूल वजह सही तरीके से मीटर रीडिंग और बिलिंग न होना है, जिसके चलते वितरक कंपनियों को हर साल इतना भारी घाटा हो रहा है।’ ऊर्जा मंत्री ने सवालिया लहजे में कहा, ‘वर्ष 2017-18 में राज्यों में वे (वितरक कंपनियां) आपूर्ति की गई 45-55 फीसदी का बिल तैयार करने में सक्षम नहीं हैं

तो राज्यों की बिजली वितरक कंपनियां इस स्थिति में कैसे व्यावहारिक हो सकती हैं? व्यापक स्तर पर हो रही बिजली चोरी की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे ऊपर चौबीसों घंटे बिजली मुहैया करने का दायित्व है, लेकिन हम ऐसा करने में समर्थ नहीं हैं, क्योंकि हम आपूर्ति की गई बिजली की कीमत वसूल करने में सक्षम नहीं हैं।

‘ऊर्जा मंत्री ने बताया कि इस कार्यप्रणाली में मानवीय भूमिका को समाप्त कर उसकी जगह उपभोक्ताओं की मदद के लिए प्रीपेड प्रणाली और स्मार्ट मीटरिंग के साथ-साथ 15 फीसदी की शुल्क-नीति में वितरक कंपनियों के घाटे में लेनदारी के लिए अनुमति योग्य अधिकतम सीमा करते हुए भारतीय विद्युत अधिनियम 2003 में परिवर्तन का प्रस्ताव लाया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘मैनुअल मीटर रीडिंग की कोई व्यवस्था ही नहीं रहेगी।

हम मानवीय भूमिका को समाप्त कर देंगे और उपभोक्ता मोबाइल के जरिये अपने व्यय-सामथ्र्य के अनुरूप बिजली का भुगतान करेंगे। बड़े उपभोक्ताओं के लिए स्मार्ट मीटर होंगे, जिसका अंकेक्षण फीडर स्तर पर होगा।’इसके अलावा यह भी अनिवार्य कर दिया जाएगा कि बिजली वितरक कंपनियां अपने घाटे को ग्राहकों पर नहीं थोप सकती हैं।

ऊर्जा मंत्री ने बताया कि इस पर नियामकों से बातचीत चल रही है कि 2019 के बाद घाटे को दरों में खपाने की अनुमति 15 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती। उन्होंने बताया कि वितरक कंपनियों के संचित ऋणों के पुनर्गठन करने की दिशा में केंद्र ने उदय स्किम तैयार की है, जिसमें राज्य सरकारों ने कर्ज का भार अपने ऊपर ले लिया है।

अब तक 27 राज्य इस स्कीम में शामिल हो चुके हैं। सिंह ने कहा, ‘मैंने राज्यों को बता दिया है कि अगर आप प्रीपेड और स्मार्ट मीटरिंग को अपनाते हैं तो आपका घाटा 20 फीसदी तक कम हो जाएगा।’ ऊर्जा मंत्री ने बताया कि देश में बिजली वितरण के बुनियादी ढांचे को नया रूप देने में 85,000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।
नॉन-परफॉर्मिग एसेट्स यानी बैंकों के डूबे हुए कर्ज के मामले में ऊर्जा क्षेत्र की बड़ी हिस्सेदारी है, जिसका आंकड़ा आठ लाख करोड़ को पार कर गया है।

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