नई दिल्ली : देश में विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियां मई महीने में थोड़ी नरम हुई हैं। इसका कारण नये कार्यों को लेकर आर्डर वृद्धि की गति का धीमा होना है। वहीं ऐसा जान पड़ता है कि मुद्रास्फीति दबाव बढ़ने के कारण रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में वृद्धि कर सकता है। निक्केई इंडिया मैनुफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) मई में घटकर 51.2 पर आ गया जो अप्रैल में 51.6 था। भारत कच्चे तेल का शुद्ध आयातक है, यह भारत में सुधार खासकर निजी खपत को अस्थिर कर सकता है।
आईएचएस का मानना है कि तेल की ऊंची कीमत रुपये की विनिमय दर को कम करेगी तथा चालू खाते का घाटा बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति को काबू में करने तथा वित्तीय स्थिरता बनाये रखने के लिये यह संभावना है कि आरबीआई गर्मियों में नीतिगत दरों में वृद्धि करेगा। हालांकि वित्त वर्ष 2018-19 में अपनी पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में केंद्रीय बैंक ने रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया था और 6 प्रतिशत पर बरकरार रखा।
मौद्रिक नीति समिति पिछले साल अगस्त से नीतिगत दर में कोई बदलाव नहीं किया है। इस बीच, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी मांग की रिपोर्ट के बीच भारतीय विनिर्माताओं ने फरवरी से निर्यात आर्डर में अच्छी वृद्धि की रिपोर्ट दी है। रोजगार मोर्चे पर कंपनियों ने कर्मचारियों की संख्या बढ़ायी लेकिन नियुक्ति की गति धीमी रही। यह उत्पादन और नये आर्डर में नरम प्रवृत्ति को बताता है।
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