नई दिल्ली : नई इस्पात नीति लागू होने से देश ने 5,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत की और पिछले चार वर्षों में उसने कच्चे इस्पात उत्पादन क्षमता में करीब 2.4 करोड़ टनकी वृद्धि की है। इस्पात सचिव अरुणा शर्मा ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि इस वर्ष भारत ने जापान को पछाड़कर दूनिया के दूसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक के रूप अपनी जगह बनाई है। पिछले चार वर्षों में इस्पात मंत्रालय की ओर से उठाए गए कदम और उपलब्धियों के बारे में बताते हुए यह बात कही।
शर्मा ने कहा कि हम यहां नहीं रुकने वाले हैं। हम सभी पिछले वर्ष पेश हुई महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय इस्पात नीति (एनएसपी) के बारे में पता है, जिसके तहत हमने इस्पात क्षमता को 2030 तक बढ़ाकर 30 करोड़ टन और 25 करोड़ टन कच्चे इस्पात का उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। सचिव ने कहा कि मई 2017 में नई नीति के लागू होने के बाद अब तक लगभग 5,000 करोड़ रुपये के विदेशी मुद्रा की बचत का अनुमान है। उन्होंने जोर दिया कि इस्पात उत्पादन क्षमता 2014-15 में 11 करोड़ टन से बढ़कर 2017-18 में 13.4 करोड़ टन हो गया है। अकेले 2017 में उत्पादन क्षमता में 70 लाख टन की वृद्धि हुई।
शर्मा ने कहा कि भारत का इस्पात क्षेत्र पिछले चार वर्षों में करीब 5 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। वर्तमान में इस्पात उद्योग में जारी तेजी और परिदश्य को देखते हुए 2020 तक इस्पात उत्पादन क्षमता बढ़कर 15 करोड़ टन होने का अनुमान है। इस्पात निर्यात में वित्त वर्ष 2014-15 के बाद से तेजी जारी है। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2016-17 में भारत इस्पात का शुद्ध निर्यातक बना रहा। 2016-17 में 82 लाख टन इस्पात का निर्यात किया गया , जो कि इससे पिछले वित्त वर्ष के निर्यात से 102 प्रतिशत अधिक है।
इस्पात निर्यात 2014-15 में 56 लाख टन से बढ़कर 2017-18 में 96 लाख टन हो गया। वहीं दूसरी ओर आयात 36 प्रतिशत गिरकर 2015-16 में 1.17 करोड़ टन से 75 लाख टन रह गया। लौह अयस्क, कोकिंग कोल जैसे कच्चे माल से जुड़े सवालों पर इस्पात सचिव ने कहा कि उत्पादकों के लिए कच्चे माल की कमी नहीं है।रोजगार के मोर्चे पर मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों पर उन्होंने कहा कि नई इस्पात नीति का उद्देश्य 36 लाख लोगों के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अतिरिक्त रोजगार पैदा करना है।
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