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चीन से आयात में बड़ी गिरावट

चीन के साथ व्यापार संतुलन बनाने के लिए भारत ने पिछले कुछ महीनों में लगातार प्रयास किये और इस मुद्दे को दोनों देशों के प्रत्येक बातचीत में उठाया जाता रहा है।

नई दिल्ली : व्यापार घाटा कम करने के प्रयासों के बीच भारत का चीन के लिये निर्यात बढ़ रहा है जबकि आयात में उल्लेखनीय गिरावट आयी है। चीन के साथ व्यापार संतुलन बनाने के लिए भारत ने पिछले कुछ महीनों में लगातार प्रयास किये और इस मुद्दे को दोनों देशों के प्रत्येक बातचीत में उठाया जाता रहा है।

आंकड़े के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में जनवरी तक चीन को भारतीय निर्यात में 31 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है। यह आंकड़ा 10 अरब डालर से बढ़कर 14 अरब डालर तक पहुंच गया है। वही इसी अवधि में होने वाले आयात में 24 प्रतिशत की गिरावट आयी है। बीते वित्त वर्ष में चीन के साथ व्यापार घाटा भी 53 अरब डालर से कम होकर 46 अरब डालर तक आ गया है। मौजूदा आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में भारतीय निर्यात के लिए चीन तीसरा सबसे बड़ा देश है जबकि आयात के लिए यह पहले स्थान पर है।

दोनों देशों के आपसी व्यापार वर्ष 2001-02 के तीन अरब डालर से बढ़कर वर्ष 2017-18 तक 90 अरब डालर तक पहुंच गया है। चीन से भारत को आयात होने वाली वस्तुओं में 30 प्रतिशत इलेक्ट्रिकल्स उपकरण, मैकेनिकल उपकरण 19 प्रतिशत जैविक रसायन 12 प्रतिशत तथा अन्य शामिल हैं। चीन को निर्यात होने वाली वस्तुओं में जैविक रसायन 19.4 प्रतिशत, खनिज ईंधन 19.3 प्रतिशत और कपास 10 प्रतिशत तथा अन्य हैं।

पिछले दशक में चीन के उत्पादों ने भारतीय बाजारों में तेजी से जगह बनायी थी लेकिन वर्ष 2018-19 में इसमें उतार का रुख बन गया। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत और चीन के बीच औद्योगिक निर्यात में तेजी से इजाफा हुआ है। दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार का 53 प्रतिशत हिस्सा औद्योगिक निर्यात का है। जानकारों का कहना है कि दुनिया में भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक देश है लेकिन चीन को होने वाले निर्यात में इसकी हिस्सेदारी नहीं है। चीन की प्रक्रियागत बाधायें इसका प्रमुख कारण है, हालांकि भारतीय जेनेरिक दवायें अमेरिका और चीन को निर्यात की जाती हैं।

दोनों देशों की सीमायें सटी हुई हैं लेकिन इसके बावजूद भी आपसी व्यापार की लागत अपेक्षाकृत ज्यादा आती है। दोनों देशों के बीच कृषि एवं प्रसंस्करित उत्पादों का व्यापार बढ़ने के लिए प्रक्रियागत बाधाओं को दूर किया जाना जरुरी है। इससे आपसी व्यापार को प्रोत्साहन मिलेगा और लागत कम होगी। दोनों देशों के आपसी व्यापार के रुख को देखते हुए चीन के साथ व्यापार घाटा कम होने की उम्मीद है और इसका असर आने वाले सालों में दिखायी देगा।

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