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मर्चेंट बैंकरों के कारण एनपीए बढ़ा : RBI

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मुंबई : रिजर्व बैंक ने परियोजनाओं के लिये कर्ज देते समय उनकी ठीक ढंग से जांच-परख नहीं करने के लिये मर्चेंट बैंकरों के बीच हितों के टकराव को अहम वजह बताया है जिसकी वजह से बैंकों का गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है। उल्लेखनीय है कि सितंबर तिमाही तक एनपीए का आकार 10,000 अरब रुपये यानी बैंक के कुल कर्ज का 10% से ऊपर निकल गया।

चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही के लिए अपनी वित्तीय स्थिरता रपट (एफएसआर) में रिजर्व बैंक ने कहा है, बैंकों में कर्ज नुकसान का जो संकट खड़ा हुआ है उससे दीर्घावधि परियोजनाओं के लिये कर्ज देते समय उनकी जांच परख में खामियां उजागर हुई हैं। इस रपट के अनुसार इस तरह की परियोजनाओं में बैंकों के समूह ने ऋण देने की मंजूरी पेशेवर मर्चेंट बैंकरों से सलाह-मशविरा करके दी है। इसमें पहले से ही हितों का टकराव शामिल हैं क्योंकि आकलन करने वाले मर्चेंट बैंकरों को ऋण लेने वाले पहले से भारी भुगतान कर देते हैं। यह बात ध्यान दिए जाने योग्य है कि ऋण बाजार में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का दबदबा है। इसमें भी भारतीय स्टेट बैंक की स्थिति सबसे मजबूत है और वह इस तरह के ऋणों की मंजूरी के लिए अपनी मर्चेंट बैंकिंग इकाई एसबीआई कैप्स का इस्तेमाल करती है। वह इसकी सलाह ऋण पुनर्गठन के लिए भी लेती है।

उल्लेखनीय है कि बैंकों का सकल एनपीए अनुपात में 19.3% वृद्धि हुई है और इसमें भी सबसे ज्यादा हिस्सेदारी कारपोरेट क्षेत्र की है। इसमें भी धातु, बिजली, इंजीनियरिंग, बुनियादी ढांचा और निर्माण क्षेत्र प्रमुख है। इन सभी में परियोजना मूल्यांकन शामिल रहा है। बेसिक धातुओं और धातु उत्पादों के क्षेत्र का सकल एनपीए में 44.5 प्रतिशत हिस्सा रहा है जबकि निर्माण क्षेत्र का 26.7 प्रतिशत, ढांचागत क्षेत्र का 19.6 प्रतिशत और इंजीनियरिंग क्षेत्र का सकल एनपीए बढ़कर 31 प्रतिशत तक पहुंच गया। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि मार्च तिमाही तक बैंकों का सकल एनपीए 10.8 प्रतिशत तक पहुंच सकता है और सितंबर 2018 तक यह 11.1 प्रतिशत हो सकता है। सकल एनपीए में इस वृद्धि के लिये निजी क्षेत्र के बैंकों पर भी दोष मढा गया है जो कि अपने फंसे कर्ज के आंकड़े को कम बताते रहे हैं। इस साल सितंबर तिमाही में सकल एनपीए छह माह पहले के 9.6 प्रतिशत से बढ़कर 10.2 प्रतिशत पर पहुंच गया।

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