रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में रेपो दर को पूर्ववत रखे जाने को लेकर उद्योग जगत ने मायूसी जताई है। अर्थव्यवस्था में गतिविधियों को बढ़ाने के लिये रेपो दर को घटाकर 4.5 प्रतिशत के स्तर पर लाया जाना चाहिये। हालांकि, वाहन क्षेत्र, आवास और छोटे उद्योगों के लिये नकदी बढ़ाने के उपायों को उद्योग जगत ने प्रोत्साहन देने वाला कदम बताया है। उद्योग मंडल फिक्की की अध्यक्ष संगीता रेड्डी ने कहा है कि रेपो दर में इस समय 0.15 से 0.25 प्रतिशत तक की कटौती की जरूरत थी और समय भी उपयुक्त था।
रेड्डी ने कहा है कि रिजर्व बैंक का यह कदम मुद्रास्फीति उसके संतोषजनक दायरे से ऊपर निकल जाने की वजह से हो सकता है लेकिन उद्योगों का मानना है कि इस समय मुद्रास्फीति की वजह आपूर्ति की कमी हो सकती है। ऐसे में रेपो दर में चौथाई प्रतिशत तक की कटौती करना ‘सही समय पर उठाया गया कदम होता।’
एसोचैम के अध्यक्ष डा. निरंजन हीरानंदानी ने हालांकि मौद्रिक समीक्षा पर सकारात्मक दृष्टिकोण दिखाते हुये कहा कि नीति में बैंकिंग तंत्र एक लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त तरलता डालने के साथ ही वाहन, आवास और छोटे एवं मझोले उद्योग क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया है।
डा. हीरानंदानी एसोचैम का अध्यक्ष होने के साथ ही आवास क्षेत्र की शीर्ष संस्था नारेडको के भी अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि मध्यम श्रेणी के उद्योगों को बैंकों से बाहरी दर से जुड़ी ब्याज दर पर कर्ज उपलब्ध कराये जाने और एमएसएमई के पुराने कर्ज के पुनर्गठन के मामले में उदार रवैया अपनाये जाने के कदम से पूरी अर्थव्यवस्था में धारणा सकारात्मक होगी और उसे बल मिलेगा।
रिजर्व बैंक ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के कर्जों के एकबारगी पुनर्गठन की समयसीमा को मार्च से बढ़ाकर 31 दिसंबर 2020 तक कर दिया है। यह कदम न केवल संकटग्रस्त क्षेत्र को राहत पहुंचायेगा बल्कि बैंकों के लिये भी उनके बहीखातों को ठीक करने में मदद देगा।