नई दिल्ली : भारतीय रेलवे इस सप्ताह यात्री किरायों को बढ़ाने की घोषणा कर सकती है। ये वृद्धि वातानुकूलित श्रेणी से लेकर अनारक्षित एवं उपनगरीय मासिक-त्रैमासिक सीजन टिकटों के किरायों तक सभी श्रेणियों पर लागू होगी। रेलवे सूत्रों के अनुसार संसदीय समितियों की सिफारिशों एवं परिचालन अनुपात पर बढ़ते दबाव को देखते हुए रेलवे को आखिरकार अपने आखिरी विकल्प का इस्तेमाल करना पड़ रहा है।
रेलवे बोर्ड ने नयी दरों का खाका तैयार कर लिया है और प्रधानमंत्री कार्यालय से उसे इसके लिए हरी झंडी भी मिल गयी है। रेलवे बोर्ड को झारखंड विधानसभा के चुनाव संपन्न होने तक प्रतीक्षा करने को कहा गया था। सोमवार को मतगणना होने के बाद नये किराया दर की कभी भी घोषणा हो सकती है। बीते कुछ वर्षों के दौरान रेलवे ने सीधे तौर पर यात्री किराया में न किसी तरह की वृद्धि नहीं की है जिससे उसकी आर्थिक सेहत दुरुस्त रह सके।
बीते वर्षों के दौरान रिफंड नियमों में बदलाव, फ्लेक्सी फेयर और पांच से 12 वर्ष आयु के बच्चों की बर्थ देने एवज में पूरा किराया लेने के उपाय कर कुछ भरपाई करने की कोशिश की गई लेकिन सूत्रों के अनुसार यह रेलवे की आर्थिक स्थिति में पर्याप्त सुधार लाने में नाकाम रहा। लिहाजा अब रेलवे के पास परिचालन अनुपात को संतुलित रखने के लिए यात्री किराया बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया। सूत्रों ने कहा कि रेलवे बोर्ड ने कई पहलुओं पर विचार करने के बाद प्रयास किया है कि किराया वृद्धि का किसी एक यात्री सेगमेंट पर ज़्यादा दबाव नहीं पड़ा और बढ़ोत्तरी संतुलित एवं एकसमान हो।
सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड ने किराया दरों के निर्धारण के लिए बहुत विचार मंथन किया है। इसके लिए उपनगरीय ट्रेन और मेल एक्सप्रेस ट्रेनों में द्वितीय श्रेणी के अनारक्षित और शयनयान एवं वातानुकूलित श्रेणियों के आरक्षित टिकटों के किराये में समान रूप से इस वृद्धि करने का प्रस्ताव किया गया है। यह बढ़ोत्तरी पांच पैसा प्रति किलोमीटर से लेकर 40 पैसा प्रति किलोमीटर तक के बीच रहने की संभावना है।
परिचालन अनुपात लगातार बढ़ रहा
हाल ही में संसद में पेश रेलवे पर संसदीय स्थायी समिति की एक रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि यात्री किराये को तर्कसंगत बनाया जाए। लेकिन राजनीतिक कारणों से रेलवे बोर्ड किराया बढ़ाने को लेकर कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। जबकि रेलवे का खर्च चाहे वह डीजल हो या बिजली सब कुछ बढ़ चुका है। लगातार खर्च बढ़ने से रेलवे का परिचालन अनुपात भी लगातार बढ़ता जा रहा है।
संसदीय समिति की रिपोर्ट ने रेल किरायों में विभिन्न वर्गों को मिलने वाली रियायतों के दुरुपयोग के कारण भी राजस्व के बड़े नुकसान पर भी चिंता व्यक्त की थी। रिपोर्ट के अनुसार बीते वर्ष रेलवे का परिचालन अनुपात 98.4 प्रतिशत से अधिक हो गया है जो अब तक का सर्वाधिक है।