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पेट्रोल-डीजल के दाम में कमी

केन्द्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर क्रमशः पांच रुपए और दस रुपए प्रतिलीटर की दर से उत्पाद शुल्क घटा कर चहुं दिशा में बढ़ती महंगाई की रफ्तार को रोकने का प्रयास किया है

केन्द्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर क्रमशः पांच रुपए और दस रुपए प्रतिलीटर की दर से उत्पाद शुल्क घटा कर चहुं दिशा में बढ़ती महंगाई की रफ्तार को रोकने का प्रयास किया है। यह प्रयास कितना सफल रहता है इसका पता आने वाले समय में तब चलेगा जब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के भावों का जायजा लिया जायेगा। निश्चित रूप से इसमें कोई दो राय नहीं हो सकतीं कि कोरोना संक्रमण के पिछले दो वर्षों के समय में सरकार की राजस्व प्राप्तियों पर विपरीत असर पड़ा और ये कम हुईं क्योंकि इस दौरान उत्पादन घटने से लेकर व्यापारिक व वाणिज्यिक गतिविधियों में नीचे का रुख रहा। इसे देखते हुए सरकार ने अपने राजस्व की क्षतिपूर्ति करने के लिए पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया जिसकी चारों तरफ आलोचना भी हुई। इसकी वजह यह थी कि पेट्रोल अब रईसों की कारों का ही ईंधन नहीं रह गया है बल्कि यह निम्न मध्यम वर्ग से लेकर मध्यम वर्ग तक के लोगों के दुपहिया वाहनों का भी जरूरी ईंधन बन चुका है। 
आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू होने के बाद और वित्तीय क्षेत्र में माकूल संशोधन होने से गांवों में भी अब बाइसिकिल की जगह मोटर साइकिल या स्कूटर ने ले ली है। इसे देखते हुए देश में सकल चार पहिया वाहनों की बढ़ती बिक्री को ध्यान में रखते हुए पेट्रोल की खपत में इजाफा हो रहा है। यह विकास की एेसी स्वाभाविक प्रक्रिया है जिससे हर भारतीय का सिर ऊंचा होना चाहिए मगर साथ ही सरकार को भी यह देखना चाहिए कि इस प्रक्रिया का पहिया मध्यम न पड़ने पाये क्योंकि उसका असर उत्पादन से लेकर रोजगार तक पर सीधा पड़ता है। बाजार मूलक अर्थव्यवस्था में यही सबसे बड़ा जोखिम रहता है कि हर आर्थिक मानक एक-दूसरे पर निर्भर करता है। मसलन यदि डालर की कीमत ऊंची हो जायेगी तो भी पेट्रोल के भाव बढ़ने का अन्देशा पैदा हो जायेगा अतः बहुत जरूरी यह रहता है कि सरकार के वित्तीय प्रशासनिक संस्थान हर मोर्चे पर लगातार सावधान रहें और किसी भी मानक को नीचे की तरफ न जाने दें। अब जबकि विगत सितम्बर महीने में हुए सकल कारोबार से जीएसटी के तहत सरकार को रिकार्ड वसूली एक लाख तीस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हुई है तो इसने पेट्रोल व डीजल के उत्पाद शुल्क में कमी की घोषणा की है। हालांकि कुछ राजनीतिक आलोचक इसकी वजह उपचुनावों में रही सत्तारूढ़ पार्टी की कमजोर हालत  को भी बता रहे हैं मगर असलियत यही है कि अर्थव्यवस्था में उठान के लक्षण आते ही सरकार ने उत्पाद शुल्क में कमी की है। बेशक यह कमी इतनी अधिक नहीं है कि इनकी तुलना पूर्व में की गई उन कटौतियों से की जा सके जब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव 140 डालर प्रति बैरल तक पहुंच गये थे। उस समय सरकार ने पेट्रोल के दाम घरेलू बाजार में 72 रुपए प्रति लीटर से ऊपर नहीं जाने दिये थे। परन्तु हमें उस समय का डालर का भाव भी देखना होगा जो कि अब 72 रुपए प्रति डालर के आसपास घूम रहा है। बेशक इसमें कोई दो राय नहीं है कि कि पेट्रोल व डीजल पर शुल्क लगा कर सरकार जो भी राजस्व प्राप्ति करती है उसे ‘इजी मनी’ ही कहा जाता है क्योंकि इसमें सरकार का कोई श्रम शामिल नहीं होता है मगर यह भी हकीकत है कि सरकार इस ‘मद’ से प्राप्त धन का उपयोग भी जनहित की विभिन्न परियोजनाओं पर ही करती है। देखना केवल यह होता है कि आवश्यक उपयोग की वस्तु पर जरूरत से ज्यादा शुल्क न लगाया जाये जिससे आम जनता को कष्ट हो। वैसे भारत जैसे विशाल देश के लिए एक एेसी पेट्रोलियम नीति की जरूरत है जिससे इस ईंधन के भाव एक सुनिश्चित दायरे में ही घूमे जिससे अर्थव्यवस्था के दूसरे ‘कारक’ प्रभावित न हो सकें। लेकिन भारत में पेट्रोल व डीजल के भाव अन्तर्राष्ट्रीय भावों से जोड़ दिये गये हैं तो एक मात्र उत्पाद शुल्क ही एेसा बचता है जिसकी दरों में कम-बढ़ती करके इसके भावों को एक निश्चित दायरे में रखा जा सकता है। डालर की कम-बढ़ती होती कीमत को देखना भी सरकार या रिजर्व बैंक का काम है क्योंकि इससे सकल आर्थिक तन्त्र सीधे प्रभावित होता है।
 कुछ दक्षिण एशियाई देशों ने यही प्रणाली अपनाई हुई है। मगर इसके लिए सरकार को उत्पाद शुल्क से होने वाली कमाई की सीमा भी निर्धारित करनी पड़ेगी। इसी के अनुरूप राज्य सरकारों को भी कदम उठाने पड़ेंगे। हालांकि जीएसटी प्रणाली लागू होने के बाद राज्यों के हाथ में केवल पेट्रोल-डीजल व मदिरा ही एेसे उत्पाद बचे हैं जिन पर वे मनमाफिक शुल्क लगा सकते हैं, मगर उन्हें भी इस दिशा में कारगर कदम उठाने होंगे क्योंकि अन्ततः भरपाई तो उपभोक्ता को ही करनी पड़ती है। तीसरा सबसे कठिन व टेढ़ा रास्ता पेट्रोल उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का है। इस क्षेत्र में हम बहुत पीछे हैं। कुल खपत का 80 प्रतिशत हम आयात करते हैं और गन्ने के रस के माध्यम से उत्पादित होने वाले गैसोलीन ईंधन की तरफ हम पहियों- पहियों चल रहे हैं। इससे जुड़ी हुई मोटर टैक्नोलोजी की समस्या अलग है। अतः सरकार ने जो भी कमी उत्पाद शुल्क में की है उसे जारी रखने की सूरत तभी बन सकती है जब अर्थव्यवस्था उठान की तरफ लगातार चलती रहे।

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