मुंबई : पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने इस बात पर जोर दिया है कि सरकार रिजर्व बैंक से साढे चार लाख से लेकर सात लाख करोड़ रुपये तक की अधिशेष पूंजी पर दावा कर सकती है। सुब्रमण्यम ने अपनी शीघ्र प्रकाशित होने वाली किताब ‘ऑफ काउंसल: दी चैलेंजेज ऑफ दी मोदी-जेटली इकोनॉमी’ में कहा है कि इस मामले में वैश्विक केन्द्रीय बैंकों का औसत 8.4 प्रतिशत है जबकि रिजर्व बैंक दुनिया के केन्द्रीय बैंकों में अकेला ऐसा बैंक है जो कि अपनी बैलेंसशीट का करीब 28 प्रतिशत आरक्षित कोष के रूप में रखता है।
उन्होंने कहा है कि रिजर्व बैंक फूलते पूंजी आधार को जवाबदेह बनाने की जरूरत है। उन्होंने रिजर्व बैंक के पास उपलब्ध अधिशेष पूंजी को परिसंपत्ति के समक्ष शेयरधारक इक्विटी के अनुपात के हिसाब से 4,50,000 करोड़ रुपये माना है जबकि बैंक आफ इंटरनेशनल सैटलमेंट (बीआर्सएस) द्वारा तय औसत के हिसाब से सात लाख करोड़ रुपये पूंजी अधिशेष बताया है।
उन्होंने कहा कि जब अन्य प्रमुख केंद्रीय बैंकों तथा बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट (बीआईएस) की कार्यप्रणाली पर गौर करते हैं तो करीब सभी अन्य केंद्रीय बैंक एक प्रतिशत का जोखिम सहने का स्तर चुनते हैं। जब हम यह रिजर्व बैंक पर आजमाते हैं तो पता चलता है कि इसके पास 4,50,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी है। रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017- 18 की समाप्ति पर उसकी बैलेंस सीट 3,61,750 अरब रुपये की थी।
यह राशि एक साल पहले के मुकाबले 9.5 प्रतिशत अधिक रही। रिजर्व बैंक का वित्त वर्ष जुलाई से जून तक होता है। 8 नवंबर 2016 को हुई नोटबंदी से रिजर्व बेंक के बैलेंससीट में 15,800 अरब रुपये की कमी आई थी। यह किताब पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया द्वारा सात दिसंबर को प्रकाशित हो रही है। यह किताब ऐसे समय में सामने आ रही है जब हाल ही में रिजर्व बैंक और सरकार के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर खींचतान की खबरें सामने आ रही थीं।
पूर्व आर्थिक सलाहकार ने यह भी कहा है कि केंद्रीय बैंक की पूंजी की स्थिति में कोई बदलाव करने के कई जोखिम भी होंगे। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक भी सरकार का अंग है। पूरी सरकार का बैलेंस शीट मायने रखता है न कि किसी एक अंग के बैलेंस शीट का। जहां तक पूरी परिस्थिति का सवाल है, पूंजी में किसी प्रकार की कमी से मुनाफा प्रभावित होगा क्योंकि केंद्रीय बैंक के पास आय सृजित करने की खास दक्षता है।