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शेयर पुनर्खरीद नियम हुए आसान

सेबी ने ऐसी सूचीबद्ध कंपनियों के के लिए शेयर वापस खरीदने के नियमों सरल किए हैं जो आवास ऋण और गैर- बैंकिंग वित्तीय कारोबार के लिए अनुषंगी कंपनियां चला रही हैं।

नई दिल्ली : पूंजी बाजार नियामक सेबी ने ऐसी सूचीबद्ध कंपनियों के के लिए शेयर वापस खरीदने के नियमों सरल किए हैं जो आवास ऋण और गैर-बैंकिंग वित्तीय कारोबार के लिए अनुषंगी कंपनियां चला रही हैं। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की तरफ से इस संबंध में अधिसूचना सेबी निदेशक मंडल की अगस्त में हुई बैठक में इन नियमों को मंजूरी देने के बाद आई है। 
शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा अपने बिके हुये शेयरों को वापस खरीदने का काम सेबी के पुनर्खरीद नियमन और साथ ही कंपनी कानून के तहत संचालित होता है। ऐसी कंपनियों के लिये अपने शेयरों को वापस खरीदने के लिये जो शर्तें रखी गई है उनमें मुख्य तौर पर कंपनियों से कहा गया है कि शेयर खरीद पेशकश उनकी कुल चुकता पूंजी और कंपनी की मुक्त आरक्षित राशि की तुलना में 25 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है। 
हालांकि, शेयर खरीद का आकार यदि 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ता है तो उसके लिये एक विशेष प्रस्ताव लाकर शेयरधारकों से मंजूरी लेनी होगी। कंपनियों के लिये शेयर वापस खरीदने की अनुमति की एक ओर शर्त यह है कि कंपनी के ऊपर सुरक्षित और असुरक्षित दोनों तरह के कुल ऋण का अनुपात शेयर खरीद के बाद कंपनी की चुकता पूंजी और मुक्त आरक्षित राशि के मुकाबले दोगुने से अधिक नहीं होना चाहिये। इसमें यदि कंपनी कानून में ऋण-इक्विटी अनुपात के लिये ऊंचे औसत का उल्लेख किया गया है तो यह तभी बढ़ सकता है। 
सेबी का अपने नियमों में संशोधन करने का यह फैसला इस संबंध में कारपोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के बाद सामने आया है। कारपोरेट कार्य मंत्रालय ने गैर-बैंकिंग वित्त और आवास वित्त गतिविधियों में लगी सरकारी कंपनियों को अपने शेयरों की वापस खरीद शुरू करने की अनुमति दी है। इसमें कहा गया है कि ये कंपनियां शेयरों की वापस खरीद के बाद उनका कुल ऋण-इक्विटी अनुपात 6:1 तक रह सकता है। सेबी ने इस संबंध में मई में शुरू की गई सार्वजनिक विचार विमर्श प्रक्रिया से प्राप्त जानकारी को देखते हुये कंपनियों के लिये शेयरों की वापस खरीद की प्रक्रिया को मौजूदा प्रणाली को जारी रखने का फेसला किया हे। 
वर्तमान में इस प्रक्रिया के तहत कंपनियों को लिये शेयर वापस खरीद होने के बाद ऋण-इक्विटी अनुपात दो के मुकाबले एक रहने की व्यवसथा है। हालांकि, इसमें उन कंपनियों को छूट है जिन्हें अकले अथवा एकीकृत तौर पर कंपनी कानून में ऊंचा अनुपात रखने की छूट दी गई है।

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