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विरल आचार्य का रिजर्व बैंक से इस्तीफा, केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के रहे मुखर प्रवक्ता

बेबाकी से अपनी बातें रखने वाली भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने निजी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया है।

बेबाकी से अपनी बातें रखने वाली भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने निजी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने यह इस्तीफा अपना तीन साल का कार्यकाल समाप्त होने से छह महीने पहले दिया है। आचार्य ने अक्टूबर में एक व्याख्यान में केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को लेकर सरकार के साथ मनमुटाव का संकेत दिया था। 
केंद्रीय बैंक ने सोमवार को जारी एक संक्षिप्त बयान में कहा, ‘‘कुछ सप्ताह पहले आचार्य ने आरबीआई को पत्र लिखकर सूचित किया था कि अपरिहार्य निजी कारणों के चलते वह 23 जुलाई, 2019 के बाद वह डिप्टी गवर्नर के अपने कार्यकाल को आगे जारी रखने में असमर्थ हैं।” आचार्य (45) मौद्रिक नीति समिति के सदस्य थे। 
आरबीआई ने आचार्य के इस्तीफे की मीडिया में रिपोर्ट आने के बाद उसकी घोषणा की । केंद्रीय बैंक ने कहा है कि आचार्य के त्याग-पत्र पर , ‘‘आगे की कार्रवाई के लिए सक्षम अधिकारी विचार कर रहे हैं।’’ 
स्वतंत्र विचार रखने वाले अर्थशास्त्री आचार्य कई मौकों पर सरकार और वित्त विभाग की आलोचना तथा केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का मुद्दा उठाकर खबरों में रहे। उन्होंने पिछले साल अक्टूबर ए डी श्राफ स्मृति व्याख्यानमाला में उन्होंने अपने एक भाषण में यह भी कहा था कि केन्द्रीय बैंक की स्वतंत्रता की स्वायत्तता की अनदेखी करने के परिणाम ‘घातक’ हो सकते हैं। उनकी बातों से यह साफ हो गया था कि तत्कालिक गवर्नर उर्जित पटेल के नेतृत्व वाले रिजर्व बैंक और सरकार के बीच संबंधों में सहजता का अभाव है। इसका उस समय यह भी अर्थ निकाला गया कि सरकार आम चुनावों के नजदीक आने को देखते हुए आरबीआई पर नीतियों में ढील देने के लिये दबाव दे रही है। 
उन्होंने कहा था कि सरकारें निर्णय लेने में सीमित समय सीमा वाली सोच रखती हैं जो राजनीतिक सोच विचार पर आधारित होती है जब कि केंद्रीय बैंक को लम्बे समय की सोच लेकर चलना होता है। 
केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता के पुरजोर समर्थक आचार्य ने कर्ज सीमा, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को और नकदी उपलब्ध कराने की सुविधा तथा रिजर्व बैंक के पास आरक्षित/निष्क्रिय कोष के समुचित स्तर के विषय में अपने विचारों को सार्वजनिक रूप से रखा और संकेत दिया कि इस विषय में उनकी सोच सरकार से अलग है। 
पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद वित्त मंत्रालय ने नौकरशाह शक्तिकांत दास को गर्वर बनाया। उसके बाद तीन मौद्रिक नीति समीक्षाओं में रेपो दर में 0.25-0.25 प्रतिशत (कुल 0.75 प्रतिशत) की कटौती की जा चुकी है। आचार्य ने फरवरी और अप्रैल की मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दरों में कटौती के खिलाफ वोट किया लेकिन कुछ झिझक के साथ इस महीने कटौती के पक्ष में अपनी राय दी। 
मौद्रिक नीति समिति की जून में हुई बैठक के ब्योरे के अनुसार उन्होंने राजकोषीय तस्वीर बिगड़ने को लेकर चिंता जतायी थी। 
उनका इस्तीफा ऐसे समय आया है जब सरकार और केंद्रीय बैंक द्वारा गठित एक संयुक्त समिति यह अध्ययन करने में लगी है कि आरबीआई के पास पड़ी आरक्षित पूंजी उसकी जरूरतों के हिसाब से कितनी ज्यादा है और उसमें से कितना हिस्सा हिस्सा सरकार को हस्तांतरित किया जा सकता है। 
ऐसा कहा जाता है कि आचार्य केंद्रीय बैंक के भंडार में किसी प्रकार की कमी किये जाने के खिलाफ हैं। 
आचार्य का तीन साल का कार्यकाल जनवरी 2020 में समाप्त होने वाला था। वह कथित तौर पर अगस्त में न्यूयार्क विश्वविद्यालय लौट जाएंगे। वह विश्वविद्यालय के स्टर्न स्कूल आफ बिजनेस से अवकाश पर हैं। 
इस बीच, विपक्षी कांग्रेस ने सरकार को घेरते हुए कहा कि आचार्य उन विशेषज्ञों की लंबी सूची में अपना नाम जोड़ा है जिन्होंने भाजपा शासन को ‘सचाई का आईना’ दिखाने की कोशिश की। 
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्विटर पर लिखा, ‘‘आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य उन विशेषज्ञों की लंबी सूची में अपना नाम जोड़ा है जिन्होंने भाजपा शासन को उसके शब्दों में ‘सच का आईना’ दिखाने की कोशिश की। चार आर्थिक सलाहकार, आरबीआई के दो गवर्नर और नीति आयोग के उपाध्यक्ष पहले इस्तीफा दे चुके हैं।’’ 
भाजपा शासन में वह रिजर्व बैंक के तीसरे शीर्ष अधिकारी हैं जिन्होंने पद छोड़ा या दूसरा कार्यकाल लेने से मना कर दिया। इससे पहले सरकर के साथ तनाव के कारण गवर्नर रघुराम राजन ने 2016 में दूसरा कार्यकाल नहीं लेने का निर्णय किया। राजन ने तत्कालीन वैश्विक स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना ‘अंधों में काना राजा’ से की थी। उनके इस बयान की तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने उनकी आलोचना की और भाजपा के राज्यसभा सदस्य सुब्रमणियम स्वामी ने उन्हें हटाने का अभियान चलाया। पटेल ने पिछले साल दिसंबर में गवर्नर पद से इस्तीफा दिया। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली नियुक्ति समिति ने आचार्य की नियुक्ति की थी, इसलिए उनका त्यागपत्र भी वही समिति स्वीकार करेगी। 
आचार्य के इस्तीफे के बाद आरबीआई में अब तीन डिप्टी गवर्नर एन. एस. विश्वनाथन, बी. पी. कानूनगो और एम. के. जैन बचे हैं। 
न्यूयार्क विश्वविद्यालय में वित्त विभाग के स्टर्न स्कूल आफ बिजनेस में अर्थशास्त्र के सीवीस्टार प्रोफेसर आचार्य को दिसंबर 2016 में तीन साल के लिये डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया गया था। जनवरी 2017 में उन्होंने आरबीआई में पद संभाला। 
आईआईटी बाम्बे से बीटेक और कंप्यूटर साइंस तथा इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करने वाले आचार्य ने न्यूयार्क विश्विद्यालय से ही वित्त पर पीएचडी डिग्री हासिल की। 
वह ऐसे समय केंद्रीय बैंक से जुड़े जब शीर्ष बैंक नोटबंदी के बाद धन जमा करने और निकासी से जुड़े नियमों में बार-बार बदलाव को लेकर आलोचना झेल रहा था। आचार्य रिजर्व बैंक में मौद्रिक और शोध इकाई को देख रहे थे। 
स्वतंत्र विचार रखने वाले अर्थशास्त्री आचार्य कई मौकों पर सरकार और वित्त विभाग की आलोचना तथा केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का मुद्दा उठाकर विवादों में रहे। 

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