नई दिल्ली : पिछले कुछ समय से एयर इंडिया में हिस्सेदारी बेचने की कोशिश में जुटी केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। मंगलवार को केंद्रीय उड्डयन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने कहा है कि फिलहाल विनिवेश का फैसला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। हम एयरलाइन की हालत सुधारने पर ध्यान देंगे।
जयंत सिन्हा ने कहा कि एयरलाइन इंडस्ट्री की हालत को देखते हुए हम फिलहाल विनिवेश का फैसला नहीं ले रहे हैं। इसकी बजाय हम एयरलाइन के रिवाइल प्लान पर काम करेंगे। बता दें कि केंद्र सरकार लगातार कर्ज के बोझ तले दबी एयर इंडिया में हिस्सेदारी बेचने की कोशिश में जुटी थी।
हालांकि इस डील पर अभी कोई सार्थक पहल हो नहीं सकी है। इसी साल मई में एयर इंडिया को बेचने की खातिर केंद्र सरकार ने 160 प्रश्नों का उत्तर देकर सभी शंकाएं दूर की थीं। लेकिन उसके बाद भी अभी किसी प्लेयर ने इस डील में खास रुचि नहीं दिखाई है। केंद्र सरकार ने एयर इंडिया की 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव रखा है।
जिसमें 24 फीसदी हिस्सेदारी सरकार के पास ही रहेगी। इस तरह सरकार ने खुद के लिए एयरलाइन के कामकाज में शामिल होने के लिए दरवाजे खुले रखे हैं। सिर्फ यही एक वजह नहीं है, जिससे खरीदार दूर भाग रहे हैं। इसके अलावा जो भी एयर इंडिया खरीदेगा, उसे एयरलाइन के 48,781 करोड़ के कर्ज में से 33,392 करोड़ रुपये का कर्ज भी अपने ऊपर लेना होगा।
विमानों की बिक्री से 6,100 करोड़ जुटायेगी कंपनी
कर्ज बोझ तले दबी एयर इंडिया ने वित्तीय संसाधन जुटाने की अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। कंपनी अल्पावधि कर्ज के तौर पर 500 करोड़ रुपये जुटायेगी। इसके साथ ही कंपनी ने अपने सात बड़े विमानों को बेचकर उन्हें वापस लीज पर लेने की प्रक्रिया के तहत 6,100 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई है।
एयर इंडिया के एक अधिकारी ने कहा, सितंबर की शुरुआत में एयरलाइन ने अल्पकालिक कर्ज के जरिये 500 करोड़ रुपये जुटाने के वास्ते बोलियां आमंत्रित की थी। बोलियां सौंपने के लिये 10 सितंबर अंतिम तिथि रखी गई थी। बाजार से समय रहते उपयुक्त परिणाम नहीं मिलने पर इस तिथि को 31 अक्टूबर कर दिया गया था।
एयर इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) से कर्ज के रूप में 1,000 करोड़ रुपये मिल जाने के बाद हमने 500 करोड़ रुपये का अल्पकालिक ऋण जुटाने के प्रस्ताव पर ज्यादा प्रयास नहीं किया।