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मोबाइल बाजार में ‘मेक इन इंडिया’ बेअसर

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नई दिल्ली : मेक इन इंडिया’ के तहत देश में मोबाइल और टेलीकॉम उपकरणों के निर्माण में तेजी लाने के बावजूद इस क्षेत्र में चीन निर्मित उत्पादों की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी का रुख बना हुआ है। देश में मोबाइल हैंडसेट निर्माण क्षेत्र की समस्याओं पर ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम द्वारा जारी रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है।

रिपोर्ट आईआईएम कलकत्ता और थॉट आर्बिट्रेज रिचर्स इंस्टीट्यूट (टारी) ने तैयार की है। भारत में मोबाइल फोन और टेलीकम्युनिकेशन उपकरणों के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारकों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मेक इन इंडिया के तहत दिये जा रहे प्रोत्साहन के बावजूद देश का मोबाइल हैंडसेट और दूरसंचार उपकरण निर्माण उद्योग आयात पर आधारित है। देश के कुल आयात में इस उद्योग की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है और अभी यह 26.4 प्रतिशत है। इसमें चीन निर्मित उत्पादों की हिस्सेदारी भी बढ़ी है।

वर्ष 2012-13 में चीनी उत्पादों की हिस्सेदारी 64.3 प्रतिशत थी जो वर्ष 2016-17 में बढ़कर 69.4 प्रतिशत पर पहुंच गयी। रिपोर्ट के अनुसार, आयात पर निर्भरता के कारण भारतीय विनिर्माता उत्पादों का मूल्य संवर्धन बहुत कम कर पा रहे हैं। इसमें कहा गया है कि मोबाइल और टेलीकम्युनिकेशंस उपकरण की ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन देश में मोबाइल फोन के उपयोग में हो रही बढोत्तरी की पूर्ति आयात के जरिये पूरी की जा रही है। इसमें कहा गया है कि मोबाइल प्रौद्योगिकी के खोजकर्ता स्टैंडर्ड इसेंशल पेटेंट (एसईपी) धारक अकसर यह कहते हैं कि शोध एवं विकास पर किये गये निवेश पर उनको पर्याप्त आर्थिक लाभ नहीं मिल पा रहा है जबकि मोबाइल फोन निर्माता कहते हैं कि लाइसेंस प्रौद्योगिकी के लिए उन्हें अधिक रॉयल्टी देनी पड़ रही है। इसके विपरीत रिपोर्ट तैयार करने के दौरान 10 प्रमुख कंपनियों के वित्तीय लेखा जोखा का आंकलन करने पर यह पाया गया है कि वर्ष 2013 से 2016 के दौरान रॉयल्टी में कमी आयी है वर्ष 2013 में कंपनियां 3.35 प्रतिशत रॉयल्टी दे रही थीं जो वर्ष 2016 में घटकर 2.64 प्रतिशत पर आ गयी।

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