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वोडाफोन की कर रिफंड की याचिका खारिज

पीठ ने कहा कि संबंधित वर्षों के लिए आकलन का या विशेष आडिट किया जा रहा है या फिर यह आकलन अधिकारी के पास जांच के लिए लंबित है।

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने दूरसंचार क्षेत्र की प्रमुख कंपनी वोडाफोन की आकलन वर्षों 2014-15 और 2017-18 के लिए 4,759 करोड़ रुपये के कर रिफंड के दावे को शीघ्रता से निपटाने के लिए आयकर विभाग को निर्देश दिए जाने की याचिका को ठुकरा दिया है। न्यायमूर्ति एस रविन्द्र भट और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने कंपनी को कोई राहत देने से इनकार कर दिया।

पीठ ने कहा कि कर विभाग की इस दलील में दम है कि कंपनी के खिलाफ उल्लेखनीय राशि लंबित है और इस बात की काफी संभावना है कि संबंधित आकलन वर्षों के आकलन के बाद और अधिक कर की मांग निकल सकती है। अदालत ने कहा कि विभाग के पास रिफंड को कर मांग के साथ समायोजित करने का अधिकार है।

अभी चल रही जांच प्रक्रिया की वजह से यह मांग तय नहीं की जा सकी है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि राजस्व विभाग की इस दलील में दम है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ उल्लेखनीय रूप से मांग लंबित है। इस बात की काफी संभावना है कि आकलन वर्षों के लिए आकलन पूरा होने के बाद यह मांग और बढ़ सकती है।

पीठ ने कहा कि संबंधित वर्षों के लिए आकलन का या विशेष आडिट किया जा रहा है या फिर यह आकलन अधिकारी के पास जांच के लिए लंबित है। पूर्व के वर्षों के आकलन की जांच के बाद कर मांग में उल्लेखनीय रूप से इजाफा हुआ है। इसी वजह से कर विभाग ने कंपनी की रिफंड की मांग पर आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है।

कंपनी ने दावा किया कि उसके द्वारा रिटर्न दाखिल करने के बाद उसे इसकी पावती मिली है। एक साल के अंदर रिफंडकी प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए और ऐसा नहीं होने पर ब्याज भी दिया जाना चाहिए। कंपनी की इस दलील को खारिज करते हुए पीठने कहा कि पावती या सूचना मिलने का मतलब यह है कि उसे आकलन अधिकारी को रिफंड प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार मिल जाता है।

यह आकलन अधिकारी पर निर्भर करता है कि वह अपने विवेक से यह तय करे कि वह रिटर्न की प्रकृति और संभावित देनदारी के हिसाब से तय करे कि क्या रिफंड दिया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि इन कारणों से याचिकाकर्ता की याचिका खारिज की जाती है।

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