बैतूल : किसी समय विधायक बैतूल गढ़ा डैम को लेकर पक्ष-विपक्ष का केन्द्र थे। कभी-कभी तो ऐसा लगने लगा था कि डैम को लेकर दोनो कार्यक्रम विधायक निवास से प्रायोजित हो रहे है। दोनो पक्षो का विधायक निवास/कार्यालय गढ़ा डैम का कुरूक्षेत्र बना हुआ था। लेकिन इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले ही गढ़ा डैम का झुनझुना बजाया जा रहा है। जिसके पीछे की मंशा साफ है कि भाजपा स्वर्गीय सज्जन सिंह उइके के निधन के बाद रिक्त हुई सीट पर हुए उप चुनाव में जैसे-तैसे अपनी डूबती नैयां को पार लगा पाई थी।
सीएम का रथ सूखी नदी में रेत के दल-दल में जब फसा तो मुख्यमंत्री को ख्याल आया कि नदियों पर डैम बना कर पानी और रेत दोनों को रोकना श्रेष्ठ होगा। सीएम हाऊस से घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र के एक बड़े तबके को खुश करने के लिए गढ़ा डैम को स्वीकृति प्रदान की गई है हालाकि गढ़ा डैम से बैतूल विधानसभा क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक गांवो की रोजी-रोटी छीनने से कोई नहीं रोक सकता।
जहां एक ओर 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले बहुचर्चित गढ़ा डैम विकास और समृद्धि का प्रतिक होगा वही दुसरी ओर खेती से अपनी जीविका पालने वाले दो एकड़ या उससे कम जमीन वाले सौ परिवारो के सामने वह एक ऐसा बुरा सपना लेकर आया है जिससे डरे लोगो के पास अब सिर्फ फासी का फंदा ही बचा है। बीते पचास सालो से जिस जमीन से पूरे परिवार का पेट पालने वाले गरीब मध्यमवर्गीय किसान को जमीन का दुगना भाव मिल भी गया तो उसे उस दाम पर वैसी जमीन कहां मिलेगी!
इस डैम को लेकर बैतूल के विधायक को महीमा मंडित करने का जो भाजपाई चाटुकारिता काम कर रही है वही दर्जनो सवालो को उठा कर विधायक की फजीहत बढ़ाने का काम कर चुकी है। विधायक को भले ही गढ़ा डैम का श्रेय कुमार बताया जा रहा हो लेकिन उनको इस बात का जवाब भी देना होगा कि जिस डैम के वे स्वंय विपक्ष में थे अचानक ऐसा क्या हो गया कि वे डैम के पक्ष में आ गए।
जानकार सूत्रो एवं विधायक के करीबी लोग सोशल मीडिया पर इस बात को परोस रहे है कि विधायक की 35 एकड़ जमीन की बाजारू कीमत पांच करोड़ है वह जमीन डूब में जा रही है। विधायक अपनी जमीन का लोभ – लालच छोड़ कर महान त्याग कर रहे है। प्रमुख विपक्षी कांग्रेस और आम आदमी तंज का रहे है कि कहीं विधायक वोट की राजनीति के लिए 35 एकड़ जमीन का करोड़ो का मुआवजा न लेकर बैतूल विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के दिल दिमाग पर छाई नाराजगी को दूर करने का काम कर रहे है।
जानकार सूत्र बताते है कि 2013 के विधानसभा चुनाव के पहले यह गढ़ा डैम मार्केट में आया था तब सियासतदार इसका नाम सुनते से भागते थे, सत्ता हो या विपक्ष दोनो तरफगढ़ा का नाम सुनते ही हलक सूख जाता था। इसलिए बीते चार साल से गढ़ा डैम की फाइल अज्ञात स्थान पर जिन्न समझ कर दफन कर दी गई थी। दोनों स्थिति को देखकर आज तक लोगो की समझ में यह नही आ रहा कि पांच साल में माचना नदी में ऐसा कौन सा परिवर्तन आ गया कि गढ़ा डैम की परिभाषा ही बदल गई।
इस महान परिवर्तन पर जल संसाधन के जिम्मेदार अफसरो से पूछा तो वे कुछ भी बोलने को तैयार नही हैं। उनके पास उन सवालों का जबाब नही हैं जिसमें इस प्रस्तावित डैम की इमेज में हैरत अंगेज परिवर्तन आ गया है! वैसे लोगो की जिज्ञासा का जबाब मिलना फिलहाल तो मुश्किल दिख रहा है। बैतूल ईई येवले का कहना हैं कि 2013 के प्रोजेक्ट में क्या था इसकी उन्हें जानकारी नहीं इसलिए दोनों में वे कोई भी अंतर नहीं बता सकते।
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