नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई 8 फरवरी तक टल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने तब तक केस से जुड़े 19950 पन्नों के दस्तावेज जमा करवाने के आदेश दिए हैं। इससे पहले सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से पैरवी करते हुए कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि उन्हें सभी कागजात नहीं दिखाए गए हैं। उन्होंने कहा कि कैसे कोई इतने कम समय में 19 हजार पन्नों के कागजात पेश कर सकता है, उन्हें व अन्य याचिकाकर्ताओं को इससे जुड़े कागजात नहीं दिए गए। सिब्बल ने अदालत में पूरे केस की सुनवाई 2019 के आम चुनावों के बाद करने की अपील भी की जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। वहीं यूपी सरकार के एएसजी ने अदालत में कपिल सिब्बल की बात को गलत साबित करते हुए कहा कि इस केस से जुड़े सभी कागजात और जानकारियां रिकॉर्ड में हैं। सुनवाई शुरू होते ही अदालत के सामने शिया वक्फ बोर्ड ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अदालत विवादित स्थल हिंदुओं को सौंप दे और उन्हें मस्जिद के लिए लखनऊ में जगह दी जाए।
क्या दलील दे रहे हैं वकील?
सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने मांग की है कि मामले की सुनवाई 5 या 7 जजों बेंच को 2019 के आम चुनाव के बाद करनी चाहिए। क्योंकि मामला राजनीतिक हो चुका है। सिब्बल ने कहा कि रिकॉर्ड में दस्तावेज अधूरे हैं। कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने इसको लेकर आपत्ति जताते हुए सुनवाई का बहिष्कार करने की बात कही है। कपिल सिब्बल ने कहा कि राम मंदिर एनडीए के एजेंडे में है, उनके घोषणा पत्र का हिस्सा है इसलिए 2019 के बाद ही इसको लेकर सुनवाई होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि 2019 जुलाई तक सुनवाई को टाला जाना चाहिए। इसके जवाब में यूपी सरकार की ओर से पेश हो रहे तुषार मेहता ने कहा कि जब दस्तावेज सुन्नी वक्फ बोर्ड के ही हैं तो ट्रांसलेटेड कॉपी देने की जरूरत क्यों हैं? शीर्ष अदालत इस मामले में निर्णायक सुनवाई कर रही । मामले की रोजाना सुनवाई पर भी फैसला होना है। मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा कि अगर सोमवार से शुक्रवार भी मामले की सुनवाई होती है, तो भी मामले में एक साल लगेगा।
विवादित ढांचे के नीचे हैं मंदिर के साक्ष्य
विवादित ढांचे के नीचे हिदू मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के तीन में से दो न्यायाधीशों जस्टिस सुधीर अग्रवाल और धर्मवीर शर्मा ने अपने फैसले में माना कि अयोध्या में विवादित ढांचा हिदू मंदिर तोड़ कर बनाया गया था। दोनों जजों के फैसले का आधार भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रिपोर्ट है। एएसआइ की रिपोर्ट कहती है कि विवादित ढांचे के नीचे हिदू मंदिर था। मस्जिद बनाने में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ था। हालांकि, तीसरे न्यायाधीश एसयू खान के अनुसार, इस बात का कोई सुबूत नहीं मिलता कि बाबर ने मस्जिद किसी मंदिर को तोड़ कर बनाई थी। उन्होंने ये जरूर माना कि मस्जिद का निर्माण बहुत पहले नष्ट हो चुके मंदिर के अवशेषों पर हुआ था।
हिदू संगठनों की दलील
-श्रीरामलला विराजमान और हिदू महासभा आदि ने दलील दी है कि हाई कोर्ट ने भी रामलला विराजमान को संपत्ति का मालिक बताया है।
-वहां पर हिदू मंदिर था और उसे तोड़कर विवादित ढांचा बनाया गया था। ऐसे में हाई कोर्ट एक तिहाई जमीन मुसलमानों को नहीं दे सकता है।
-यहां न जाने कब से हिदू पूजा-अर्चना करते चले आ रहे हैं, तो फिर हाई कोर्ट उस जमीन का बंटवारा कैसे कर सकता है?
मुस्लिम संगठनों की दलील
-सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने अयोध्या में 1528 में 1500 वर्गगज जमीन पर मस्जिद बनवाई थी।
-इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। मस्जिद वक्फ की संपत्ति है और मुसलमान वहां नमाज पढ़ते रहे।
-22 और 23 दिसंबर 1949 की रात हिदुओं ने केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियां रख दीं और मुसलमानों को वहां से बेदखल कर दिया।