उच्चतम न्यायालय ने राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में हस्तक्षेप की अनुमति के लिये दायर सभी अंतरिम आवेदन आज अस्वीकार कर दिए। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीब की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ ने इस दलील को स्वीकार कर लिया कि भूमि विवाद के सभी मूल पक्षकारों को ही बहस करने की अनुमति दी जानी चाहिए और इस प्रकरण से असंबद्ध व्यक्तियों की हस्तक्षेप करने के लिए दायर सारी आर्जियां अस्वीकार की जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने भाजपा नेता सुब्रमणियन स्वामी की भी इस विवाद में हस्तक्षेप के लिए दायर अर्जी अस्वीकार कर दी। हालांकि न्यायालय ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने राम मंदिर में पूजा करने के मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए स्वामी की याचिका को बहाल करने का आदेश दिया। स्वामी की इस याचिका का पहले निबटारा कर दिया गया था। स्वामी ने कहा, ‘‘ मैंने एक याचिका यह कहते हुये दायर की थी कि पूजा करना मेरा मौलिक अधिकार है और यह संपत्ति के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण है।’’
विशेष खंडपीठ के पास इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ 14 अपीलें विचारार्थ हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2010 में बहुमत के फैसले में इस विवादित भूमि को राम लला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था।
अन्य विशेष खबरों के लिए पढ़िये पंजाब केसरी की अन्य रिपोर्ट।