अयोध्या में विवादित राम मंदिर – बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई मंगलवार से सुप्रीम कोर्ट प्रत्येक दिन करेगा। यह विवाद लगभग 164 साल पुराना है। इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित कई भाषाओं में हैं, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेजों को अनुवाद कराने की मांग की थी। जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच मामले की नियमित सुनवाई करेगी। आज से सुप्रीम कोर्ट अंतिम सुनवाई शुरू कर रहा है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की तीन जजों वाली पीठ मामले की सुनवाई करेगी। आपको बता दें कि 6 दिसंबर को विवादित ढांचा ढहाये जाने के 25 साल भी पूरे हो रहे हैं ।
हालांकि, शिया वक्फ बोर्ड के इस हस्तक्षेप का अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विरोध किया। इसका दावा है कि उनके दोनों समुदायों के बीच पहले ही 1946 में इसे मस्जिद घोषित करके इसका न्यायिक फैसला हो चुका है जिसे छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया गया था. यह सुन्नी समुदाय की है । हाल ही में एक अन्य मानवाधिकार समूह ने इस मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध करते हुए शीर्ष अदालत में एक अर्जी दायर की और इस मुद्दे पर विचार का अनुरोध करते हुये कहा कि यह महज संपत्ति का विवाद नहीं है बल्कि इसके कई अन्य पहलू भी है जिनके देश के धर्म निरपेक्ष ताने बाने पर दूरगामी असर पडेंगे ।
शीर्ष अदालत के पहले के निर्देशों के अनुरूप उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उन दस्तावेज की अंग्रेजी अनुदित प्रति पेश कर दी हैं। जिन्हें वह अपनी दलीलों का आधार बना सकती है। ये दस्तावेज आठ विभिन्न भाषाओं में हैं। भगवान राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरण, सी एस वैद्यनाथन और अधिवक्ता सौरभ शमशेरी पेश होंगे और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश होंगे।
आपको बता दें कि इससे पहले साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था जिसके हिसाब से विवादित जमीन पर दो तिहाई में राममंदिर के लिए वहीं एक तिहाई मुस्लिम समुदाय को मस्जिद देने की बात कही गई थी लेकिन सहमति ना बनने की दशा में सुप्रीम कोर्ट की ओर रूख किया गया है। उधर बाबरी विध्वंस बरसी के मद्देनजर अयोध्या में कड़े सुरक्षा इंतजाम कर दिए गए है ताकि शांति व्यवस्था पूरी तरह से कायम रहे।
बता दें, राम मंदिर के आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था। फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए। इसमें कहा गया कि जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपी जाए। अधिक लेटेस्ट खबरों के लिए यहां क्लिक करें।