पटना : सत्ता के पिपासा में लोकतंत्र का चीर-हरण। आखिर कर्नाटक में जल्दबाजी में तो राज्यपाल ने येदिरप्पा को मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी। लेकिन उच्चतम न्यायालय के फैसले से आज उन्होंने लोकसभा में बहुमत साबित नहीं कर सका और अंत में सरकार गिर ही गयी। इससे लोकतंत्र तो शर्मसार हुई ही देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को भी शर्मसार होना पड़ा। राज्यपालों की गरिमा भले ही एक संवैधानिक मुखिया की रही हो। लेकिन संवैधानिक मुखिया केन्द्र के एक एजेंट के रूप में ही काम करता है। केन्द्र में जो भी सरकार आयी वह धारा 356 के तहत राज्यपालों को इस्तेमाल करते रही है।
इस परंपरा का इस्तेमाल सबसे अधिक कांग्रेस ने किया। केन्द्र में मोदी जी की सरकार कांग्रेस के पद-चिन्हों पर हुंकार भरते हैं। अल्पमत में होकर भी बहुमत हासि करने की कुचेष्टा ने भारतीय लोकतंत्र की मर्यादाओं तथा स्थापित मूल्यों का चीर हरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कर्नाटक चुनाव के नतीजों में भाजपा को 104 सीटें मिली है इसे बाद कांग्रेस और जनता दल एस गठजोड़ 38 सीटों पर जीते दर्ज की है। कांग्रेस ने जदएस को बिना वक्त गंवाये बिना शर्त समय गंवाये भाजपा की धड़कनों को बढ़ा दिया थ। संख्या बल के लिहाज से कांग्रेस जदएस गठजोड़ से भाजपा बहुत पीछे दिखायी देती है।
लेकिन सबसे बड़े दल होने के नाते राज्यपाल द्वारा भाजपा विधायक दल के नेता येदिरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी। पिछले साल मार्च महीने में 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा दल बनकर सामने आयी थी। इसी कालखंड में 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में कांग्रेस 28 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। यहां भाजपा को महज 21 सीटें हासिल हुई थी।
राज्यपाल द्वारा चुनाव बाद हुए भाजपा गठजोड़ को सरकार बनाने का न्यौता दिया। इसी प्रकार वर्ष 2018 में मेघालय विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में थी। यहां राज्यपालों द्वारा सबसे बड़े दल को सरकार बनाने का आमंत्रण नहीं देकर इसके विपरित गठजोड़ों को महत्व दिया गया। इसी तरह जम्मू कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बड़ा दल था यहां भाजपा और मुफ्ती महबूबा की अगुआई वाली पीडीपी के बीच चुनावी नतीजों के बाद गठजोड़ हुआ। राज्यपाल द्वारा यहां भी गठजोड़ को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया गया।
अधिक लेटेस्ट खबरों के लिए यहां क्लिक करें।