ईरान के राष्ट्रपति ने रविवार को चाबहार पोर्ट के पहले चरण का उद्घाटन किया। इस दौरान भारतीय प्रतिनिधि भी वहां मौजूद रहे। यह बंदरगाह ईरान के दक्षिणपूर्व सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है। अफगानिस्तान की तोलो न्यूज के मुताबिक रविवार सुबह ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने सुबह बंदरगाह का उद्घाटन किया। इस दौरान भारत, अफगानिस्तान और क्षेत्र के कई अन्य देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहें।
पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के बरक्स चाबहार पोर्ट भारत के लिए बेहद अहम है। इस पोर्ट को सामरिक नजरिये से पाकिस्तान और चीन के लिए भारत का करारा जवाब माना जा रहा है।
गुजरात के कांडला बंदरगाह एवं चाबहार बंदरगाह के बीच दूरी, नई दिल्ली से मुंबई के बीच की दूरी से भी कम है। इसलिए इस समझौते से भारत पहले वस्तुएं ईरान तक तेजी से पहुंचाने और फिर नए रेल एवं सड़क मार्ग के जरिए अफगानिस्तान ले जाने में मदद मिलेगी। इस बंदरगाह के जरिए ट्रांसपोर्ट लागत और समय की बचत होगी। इस परियोजना से दुनिया के अन्य देशों को भी जुड़ने में खासी मदद मिलेगी।
चाबहार बंदरगाह का इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह पाकिस्तान में चीन द्वारा चलने वाले ग्वादर पोर्ट से करीब 100 किलोमीटर ही दूर है। चीन अपने 46 अरब डॉलर के के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे कार्यक्रम के तहत ही इस पोर्ट को बनवा रहा है। चीन इस पोर्ट के जरिए एशिया में नए व्यापार और परिवहन मार्ग खोलना चाहता है।
भारत के लिए चाबहार बंदरगाह कई कारणों से जरूरी है। पहले और सबसे जरूरी कारण है आर्थिक सहयोग। दरअसल भारत की लगातार कोशिश है कि वह मध्य एशिया और यूरोप के देशों से आर्थिक तौर पर सीधे जुड़ सके। ऐसे में भारत को ईरान के रूप में एक बेहतर रास्ता मिला है।
इसके अलावा एक बड़ा कारण है, चीन का पानी में हस्तक्षेप। पिछले कुछ समय से चीन लगातार हिन्द महासागर, अरब सागर और अन्य अहम् समुद्री इलाकों पर उपस्थिति बढाने की कोशिश कर रहा है। दक्षिण में चीन श्रीलंका की मदद लेकर भारत पर दबाव बनाना चाहता है। पश्चिम में चीन ने पाकिस्तान से समझौता कर कराची स्थिति ग्वादर बंदरगाह को फिर से शुरू करने की कोशिश की है।
भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने मई 2016 में अंतरराष्ट्रीय मार्ग को बनाने का निर्णय लिया था। तब से चाबहार बंदरगाह का काम चल रहा है। भारत चाबहार बंदरगाह के जरिए रूस, मध्य एशिया और यहां तक की यूरोप तक पहुंचना चाहता है।
चाबहार सिर्फ भारत के लिए ईरान व अफगानिस्तान से व्यापारिक संबंध मजबूत बनाने के लिए ही नहीं है। अपितु भारत इससे रूस के साथ भी व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने में पकड़ बनाना चाहता है।
आपको बता दे कि भारत ने अफगानिस्तान को 11 लाख टन गेहूं अनुदान के रूप में देने की घोषणा की थी। उसी क्रम में यह उसी की तीसरी खेप है। भारत से इस खाद्यान्न की अगले कुछ माह में ऐसी छह खेप भेजी जाएंगी। भारत से गेहूं की पहली खेप 29 अक्टूबर को रवाना की गयी थी।
आपको बता दे कि उद्घाटन से पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनके ईरानी समकक्ष जावेद जरीफ ने आज तेहरान में एक बैठक की और चाबहार बंदरगाह परियोजना सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा की।
ईरानी विदेश मंत्रालय ने कहा कि जरीफ ने शाहिद बेहेश्टी बंदरगाह का उल्लेख किया और कहा कि यह ईरान और भारत के परस्पर और क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करता है।
ईरानी विदेश मंत्रालय के अनुसार उन्होंने कहा, यह क्षेत्र के विकास में बंदरगाह और मागो’ के महत्व को दिखाता है जो मध्य एशियाई देशों को विश्व के अन्य देशों से ओमान सागर और हिंद महासागर के जरिये जोड़ता है। अधिक लेटेस्ट खबरों के लिए यहां क्लिक करें।