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कांग्रेस भाजपा में घमासान, गुटबाजी सड़कों पर

कारणों सेगुरू शिष्य मे मनमुटाव हो गया माननीय ने लाख प्रयास किए परंतु चेले के मन से ना मानने के बाद हार का मुंह देखना पड़ा ।

श्योपुर : भाजपा ओर कांग्रेस मे जारी गुटबाजी अब सडकों पर नजर आने लगी है कांग्रेस मे जहां सभी गुट होकर वर्तमान जिलाध्यक्ष ओर कांग्रेस के पूर्व विधायक के सभी पुराने साथी ओर बरिष्ठ नेता एक होकर अब खुलकर सामने आने लगे है वहीं भाजपा में अन्र्तकलह जगजाहिर है। हाल ही मे विधायक के द्वारा आयोजित मुख्यमंत्री तीथ दर्शनयात्रियों के सम्मान कार्यक्रम से ज्यादातर भाजपा नेताओ ने दूरी बनाऐ रखी, जिसको लेकर भी चर्चाओं का बाजारगर्म है हालाकि टिकट बंटवारे में समय है ,वैसे दोनों ही दलों में चुनाव के एन वक्त ऐसे हालात हमेशा से बनते रहे है अेार टिकट बंटवारे के बाद अपने अपने हिसाब से लोग चुनाव मे काम करते नजर आते है ओर बड़े नेता के दोर के समय अपनी एकता को राग जरूरअलापते हें।

भाजपा मे क्या क्या हो रहा : वर्तमान भाजपा जिलाध्यक्ष एक समय पर वर्तमान विधायक के खास ओर विश्वसनिय सिपहसलाहर माने जाते थे लेकिन जब से जिलाध्यक्ष की कमान उनके हाथ लगी तब से अध्यक्ष ने अपनी नई राह बना ली है जिसमे विधायक विरोधी खेमे को अपनी ओर लाने का प्रयास करते रहे हालाकि ज्यादा कामयाबी मिलती नहीं दिख रही लेकिन हाँ उन्हाेंने अपना एक गुट जरूर तैयार कर लिया। वही विधायक भी अपने विरोधियों को मनाने के लगातार प्रयास करते रहे ओर आंशिक रूप से ही सही पर कई मोको पर वह पूर्व जिलाध्यक्ष सहित अन्य नेताओं को साथ दिखाते रहे ।

लेकिन माननीय के साथ आने वाले चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण चुनौती होगी अपने पूर्व शिष्य ओर जनता के बीच खासी पकड़ रखने वाले नेता का साथ पाना। हम यह बात इसलिए कह रहे हैं कि विधायक अब तक चार बार विधानसभा के लिए नामांकन भरमतदाताओ के बीच गए लेकिन विजयपुर विधानसभा का चुनाव छोड़ दिया जाए कि वह उनके कार्य क्षेत्र से अलग था हालाकि जिले की ही विधानसभा के अतिरिक्त तीन बार के चुनाव में उन्हे दो बार जीत तभी हासिल हो पाई जब उनका शार्गीद कंधे से कंधा मिलकर उनके साथ रहा एक चुनाव में एक चेनल के द्वारा उनका नाम टिकट के लिए आने की बात पर उनके समर्थको द्वारा पूरे बाजार मे जूलूस निकाल दियागया ओर बाद मे पता चला कि टिकट नहीं हुआ ओर किन्ही कारणों सेगुरू शिष्य मे मनमुटाव हो गया माननीय ने लाख प्रयास किए परंतु चेले के मन से ना मानने के बाद हार का मुंह देखना पड़ा ।

फिर अगले चुनाव विधायक महोदय ने घर जाकर मनाया ओर एक बार फिर से कंधे से कंधा मिलाकर मतभेद भुलाकर मनोभाव से दोनो ने चुनाव लड़ा ओर नतीजा एक बार फिर से विधायक बनने में सफलता मिली ओर कांग्रेस प्रत्याशी को करारी हार यहां तक की वह तीसरे नम्बर तक फिसल गए। हालात अब भी लगभग तीसरे चुनाव जैसे है देखना होगा कि क्या गुरू अपने चेले को मनाने में कामयाब होगा?

कांग्रेस में क्या क्या दिख रहाः हम कांग्रेस की बात करे तो यहां तो भाजपा से ज्यादा रि फुट्टवलमची हुई है 12 वर्षो से लगाातार कांग्रेस की कमान सम्भालने वाले ओर नेताजी के पार्टी मे घुर विरोधी माने जाने वाले हालाकि दोनो ही एक द्वार के पुजारी नेताजी को इस चुनाव से पहले अचानक प्रदेश मे महत्वपूर्ण दायित्व मिलने के चलते हाल ही मे जिलेके प्रवास पर आने पर सभी कांग्रेसीयों ने एक होकर उनसे कह दिया कि पार्टी को जिताना है तो पहले जिलाध्यक्ष बदलों फिर टिकट।

हालाकि यहां भी कई भाजपाकि तरह एक बात मिलती है कि जिलाध्यक्ष के सबसे खासमखास माने जाने वाले पूर्वनपाध्यक्ष भी काफी दिनों से सामने तन कर खड़े हुए है,ओर जिलाध्यक्ष द्वारा लगता भी नहीं कि कभी बैठकर मनमुटाव मिटाकर मन मिलाने का प्रयास किया हो ओर नतीजा यह हुआ कि वह भी अन्य कांग्रेसीयों के साथ मिलकर यह तक कहते नजर आए कि हमे यह मंजूर नही चाहे उन्हीं के किसी करीबी को जिलाध्यक्ष बना दो ओर किसी भी कांग्रेस कार्यकर्ता को टिकट दे दो ? भरोसेमन्द सुत्राें की माने तो इतनातक आश्वासन नेताजी को प्रवास के दोरान दिया कि आप चेहरा बदलो विजय दिलाने की जिम्मेदारी हम सबकी जिलाध्यक्ष भी अब तक पाँच बार विधानसभा चुनाव मे हाथ आजमा चुके हे ओर दो बार सफलता भी हासिल हुई।

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