छत्तीसगढ़ में 11 मार्च 2017 से लेकर अब तक हुए माओवादी हमले में 46 जवान शहीद हो गए हैं। जिसके बाद सीआरपीएफ ने सरकार से दर्ख्वास्त की है कि उसे ‘टेक्निकल सर्विलांस’ की ताकत दी जाए जिससे माओवादियों की स्थिति का पता लगाकर जवानों को बचाया जा सके। वर्तमान में सीआरपीएफ को जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों और उत्तर-पूर्व के राज्यों में 10 वाम कट्टरपंथी संगठनों से लड़ने वाले अर्धसैनिक बल को खुफिया जानकारी लेने के लिए इंटेलिजेंस ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी, एनटीआरओ और राज्य पुलिस फोर्स पर निर्भर रहना पड़ता है।
जिनके जरिए उसे नक्सलियों की गतिविधियों और आतंकियों के भविष्य के प्लान सहित दूसरे ऑपरेशन के बारे में पता चलता है। सीआरपीएफ को फोन टैप करने और इंटरनेट के माध्यम से खुफिया जानकारी हासिल करने का भी अधिकार नहीं है। वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की राज्य पुलिस फोर्स के पास खुफिया जानकारी इकट्ठी करने की सुविधा मौजूद है। सूत्रों के मुताबिक यही वजह है कि पुलिस कम से कम नुकसान उठाकर ऐंटी-नक्सल ऑपरेशन्स करने में कामयाब रहती है।
राज्यों को छोड़कर टेलिग्राफ ऐक्ट में जिन केंद्रीय एजेंसियों को सर्विलांस का अधिकार दिया गया है, वे हैं- IB, NIA, DRI, ED, I-T, NCB, CBI और एनटीआरओ। इससे पहले भी केंद्रीय पुलिस बल को फोन टैपिंग का अधिकार देने की बात की गई है लेकिन यह मामला विवादों से नहीं निकल पाया है। पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई ने बताया, ‘मुझे नहीं लगता कि कोई भी सरकार सीआरपीएफ को फोन टैपिंग का अधिकार देगी।
सीआरपीएफ को नक्सलियों की गतिविधि देखने के लिए ड्रोन दिए गए हैं। माओवादी फोन का इस्तेमाल करने में काफी सतर्क रहते हैं। वे जंगलों में अपने संदेशवाहकों से मेसेज भिजवाते हैं।’ गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘CAPF को टैपिंग पावर देना संभव नहीं है। इससे केंद्रीय एजेंसियों के साथ सामंजस्य बिठाने में दिक्कत होगी। पहले से ही सुविधा है कि एजेंसियों द्वारा अर्धसैनिक बलों को जानकारियां दी जाएं।’
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