जज लोया की कथित तौर पर रहस्यमयी मौत की निष्पक्ष जांच की मांग करने वाली याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। इस केस की सुनवाई खुद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच करेगी। इस बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ होंगे। बता दें कि महाराष्ट्र के एक पत्रकार बंधुराज संभाजी लोने और कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जज लोया की मौत की निष्पक्ष जांच कराने जाए की मांग की है।
सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर संभाजी लोने ने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि यह फैसला हमारे पक्ष में होगा। और जज लोया को न्याय मिलेगा। हम मांग करते हैं कि मामले को एक स्वतंत्र संगठन में सुना जाए।’ जज लोया मामले की सुनवाई को जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच को देने का विरोध किया गया था। जिसके बाद उन्होंने खुद को इस मामले से पीछे कर लिया था। शुक्रवार को CJI दीपक मिश्रा ने कहा था कि मामले की सुनवाई 22 जनवरी को रोस्टर के मुताबिक उचित बेंच करेगी।
गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायमूर्तियों ने मुख्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ बगावत करते हुए पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इस दौरान इन न्यायमूर्तियों ने खुले तौर पर जज लोया के केस की सुनवाई को लेकर। आपत्ति उठाई थी। इन न्यायमूर्तियों की ये भी शिकायत है कि मुख्य न्यायमूर्ति सभी अहम मुकदमें खुद ही सुन लेते हैं यानी मास्टर ऑफ रोस्टर होने का फायदा उठाते हैं। बता दें कि सीबीआई के दिवंगत जज बीएच. लोया की मौत पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। उनकी मौत को रहस्यमयी मौत करार देते हुए मीडिया में भी इस पर काफी चर्चा हुई।
हालांकि उनके बेटे अनुज लोया ने रहस्यमयी मौत के सवाल को गलत बताते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उनके पिता की मौत में साजिश की आशंका नहीं है दिसंबर 2014 में 48 साल के जज लोया अपने साथी जज की बेटी की शादी में शरीक होने नागपुर गए थे। जहां उनकी अचानक तबीयत बिगड़ गई। जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका निधन हो गया। डॉक्टरों ने मौक की वजह हार्ट अटैक को बताया। साल 2005 में गुजरात पुलिस ने हैदराबाद से सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर बी को गिरफ्तार किया था।
गुजरात पुलिस पर इन दोनों को फर्जी मुठभेड़ में मार डालने का आरोप है। 2006 में गुजरात पुलिस ने सोहराबुद्दीन शेख के साथी तुलसीराम प्रजापति को भी मार डाला गया। प्रजापति को सोहराबुद्दीन मुठभेड़ का गवाह माना जा रहा था। इस मामले को 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल को महाराष्ट्र में ट्रांसफर कर दिया और 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रजापति और सोहराबुद्दीन के केस को एक साथ जोड़ दिया। इस केस की सुनवाई शुरुआत में जज जेटी उत्पत कर रहे थे, लेकिन आरोपी अमित शाह के पेश ना होने पर नाराजगी जाहिर करने पर अचानक उनका तबादला कर दिया गया। फिर केस की सुनवाई जज बी एच लोया ने की। लेकिन दिसंबर 2014 में नागपुर में उनकी मौत हो गई।
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