नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक रूपरेखा तैयार किये जाने की तत्काल जरूरत है जिसमें गलत तरीके से पकड़े गए और अपनी जिंदगी के कई साल जेल में बिताने वालों के पुनर्वास के लिए खाका हो। गौरतलब है कि कई बार ये देखने में आया है कि सालों तक मुकदमा लड़ने के बाद आरोपी शख्स बरी हो जाता है। लेकिन तब तक वो अपनी जिंदगी के कई कीमती साल जेल में बिता चुका होता है। वो ऐसे गुनाह की सजा भुगत रहा होता है जो उसने किया ही नहीं।
लेकिन फिर भी उसे मुकदमें से तो न्याय मिल जाता है पर जिन्दगी से नहीं। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और एस मेहता की एक बेंच ने कहा कि वर्तमान में उन लोगों के लिए देश में कोई योजना नहीं है जिन्हें गलत तरीके से जेल में रखा गया है। उनकी क्षतिपूर्ति करने के लिए देश में कोई वैधानिक या कानूनी योजना के लिए अदालत ने विधि आयोग और केंद्र सरकार को अपनी सिफारिशें देने के लिए निर्देश दिए। यह देखा गया है कि उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में केस के बाद कई लोग बरी हो जाते हैं लेकिन तब तक वो कई वर्ष का कारावास भुगत चुके होते हैं।
और ऐसे व्यक्तियों को समाज में दोबारा उसी रूप में गुजरना बेहद मुश्किल है। ऐसे लोगों के पुनर्वास के लिए सरकार क्या कर सकती है। अदालत ने कहा कि तत्काल आवश्यकता है गलत तरीके से अभियोजन और कैद के शिकार लोगों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने के लिए एक कानूनी ढांचे की।
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