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बलात्कार पीड़िता को नहीं मिली गर्भपात की अनुमति

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नई दिल्ली : एचआईवी संक्रमण से जूझ रही पटना की बलात्कार पीड़िता को उच्चतम न्यायालय से 26 सप्ताह का गर्भ नष्ट कराने की अनुमति आज नहीं मिली।

शीर्ष अदालत ने हालांकि बिहार सरकार को मुआवजे के तौर पर पीड़िता को तीन लाख रुपये देने का आदेश भी दिया। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद पटना निवासी याचिकाकर्ता को गर्भपात की अनुमति नहीं दी।

मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गर्भपात से याचिकाकर्ता को ही नहीं, बल्कि उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण की जान को खतरा है। न्यायालय ने बिहार सरकार को बलात्कार पीड़तिा को संबंधित कोष से चार सप्ताह के भीतर तीन लाख रुपये देने का आदेश दिया।

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि महिला के इलाज का सारा खर्च बिहार सरकार उठाएगी और पटना एम्स उसका इलाज करेगा। दिल्ली स्थित एम्स पीड़िता के इलाज से संबंधित मसौदा बनाकर पटना एम्स को देगा, ताकि होने वाले बच्चे को एचआईवी पॉजिटिव होने से बचाया जा सके।

पीठ ने कहा कि इस मामले में हुई देरी को लेकर भी बिहार सरकार को न्यायालय द्वारा तय किया गया मुआवजा देना होगा। यह मुआवजा न्यायालय बाद में तय करेगा। इस मामले में अगली सुनवाई 9 अगस्त को होगी।

न्यायालय ने गत तीन मई को सुनवाई करते हुए पीड़तिा की मेडिकल जांच के लिए एम्स को आदेश दिया था। बलात्कार पीड़तिा एचआईवी से भी ग्रसित है।

गौरतलब है कि इस महिला को 12 साल पहले उसके पति ने छोड़ दिया था और बाद में उसके साथ बलात्कार किया गया जिससे वह गर्भवती हो गयी। वह अपने गर्भ को 17 हफ्ते की अवधि में ही खत्म करना चाहती थी, लेकिन पटना के अस्पताल ने उससे बच्चे के पिता का परिचय पत्र मांगा, जो वह नहीं दे पायी थी। बाद में उसने पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन बड़े ऑपरेशन की आशंका देखते हुए उसने इसकी अनुमति नहीं दी थी।

– वार्ता

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