नई दिल्ली : केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने गुरुवार को कहा है कि केन्द्र और राज्य सरकारों के संयुक्त प्रयासों के साथ किसानों की मेहनत और समर्पण से न केवल पौष्टिक धान्यों (मोटे अनाज) के उत्पादन में वृद्धि होगी बल्कि देश में पोषाहारीय तत्वों की कमी से उत्पन्न विकारों में भी कमी आएगी। उन्होंने कहा पोष्टिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए धान्य (मोटे अनाज) को पीडीएस व्यवस्था में शामिल किया गया था और इन्हें पौष्टिक धान्य के रूप में लोकप्रिय बनाया गया।
एमएसपी पर इनकी निर्धारित खरीद की व्यवस्था भी की जा रही है। कृषि मंत्री नेयह बात गुरुवार को पार्लियामेंट हाउस एनेक्सी में आयोजित पौष्टिक धान्य विषय पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति की बैठक में कही। कृषि मंत्री ने बताया कि पौष्टिक धान्यों की फसलों में ज्वार, बाजरा, रागी, लघु धान्य अर्थात कुटकी, कोदो, सांवा, कांगनी और चीना शामिल हैं। पौष्टिक धान्य पोषक तत्वों के लिए जाने जाते हैं और उनमें सूखेके प्रति सहिष्णुता, फोटो असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रतिअनुकूलता जैसी विशेषताएं पाई जाती हैं।
पौष्टिक धान्यों की खेती को चावल और गेहूंकी खेती की तुलना में जल की कम आवश्यकता पड़ती है। इस समय पौष्टिक धान्यों की खेती देश के कम उपजाऊ वाले कृषि क्षेत्रों, पर्वतीय एवंजनजातीय और वर्षा सिंचित क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से की जाती है। इन क्षेत्रों में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना राज्य शामिल हैं। हरित क्रांति से पहले देशमें वर्ष 1965-66 के दौरान 36.90 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र पर इनकी खेती की जातीथी। लेकिन अब खेती में परिवर्तित करने के कारण वर्ष 2016-17 में घटकर 14.72 मिलियन हैक्टेयर (60प्रतिशत कमी) क्षेत्र रह गया है। अब सरकार इस बढ़ाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है।
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