रोहतक : उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि युवाओं को जीवन में ऊंचे इरादों के साथ बड़े सपने लेने के लिए सख्त परिश्रम करना चाहिए, तभी वे बुलंदियों को छू सकते हैं। उन्होंने कहा कि समाज और देश को नेतृत्व देने के लिए उ’च विचारों के साथ कार्य करेंगे तो सफलता उनके कदमों की ओर अग्रसर होगी। उपराष्ट्रपति रविवार को भारतीय प्रबंधन संस्थान सुनारिया में आयोजित सातवें दीक्षांत समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि युवाओं को सामाजिक कार्य अपनी पूरी तन्मयता, क्षमता व विश्वसनीयता के साथ करनी चाहिए। युवाओं को अपनी असीम ऊर्जा का प्रयोग सार्थकता की ओर करना हमारे भारत देश की पहचान है। उन्होंने कहा कि संस्कारों के साथ जुड़ाव करके बढ़ोतरी और विकास को ध्येय मानते हुए क्रान्ति के साथ आगे बढना चाहिए।
उन्होंने कहा कि विशेषकर सामाजिक रूप से बदलाव लाने के लिए सार्थक पहल करनी चाहिए और महिलाओं की सुरक्षा के लिए सुदृढ़ संस्कार और विचार रखने चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे देश की पहचान बेहतरीन संस्कृति और विविधता में एकता को दर्शाने वाली है। इसीलिए भारत को प्राचीन समय में विश्वगुरू का दर्जा मिला हुआ था। उन्होंने कहा कि हमारे समाज में सबका साथ-सबका विकास और सभी का जीवन सुखमय और खुशहाल हो, हमारे देश की संस्कृति ही हमारी जीवन पद्धति है। नायडू ने कहा कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा के युग में हमें विश्व स्तर की भाषा और संस्कृति का ज्ञान अवश्य होना चाहिए लेकिन हमें हमारे देश की मातृभाषा को कभी नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा कि मातृभाषा में किसी भी तरह की भावना का व्याख्यान करना आसान है। इसलिए हमें सदैव अपनी मातृभाषा को प्रमोट करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
जिस प्रकार सभी नदियों के नाम महिलाओं पर रखे हुए हैं। उसी प्रकार शिक्षा की देवी सरस्वती, धन की देवी लक्ष्मी और रक्षा की देवी पार्वती को माना गया है, लेकिन वर्तमान समय में महिलाओं के प्रति सोच में कुछ बदलाव आ गया है। इसलिए भारत के प्रधानमंत्री ने प्रदेश में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम महिलाओं की सुरक्षा के लिए ही चलाया। इसके सार्थक परिणाम आ रहे हैं। वर्तमान में भी रक्षामंत्री और विदेश मंत्री भी महिला ही है। उन्होंने कहा कि खेल स्नात्तकोत्तर में डिग्री प्रदान करने वाला यह एकमात्र संस्थान है, जिसमें इस वर्ष प्रशिक्षण शुरू किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आगामी बैच में लड़कियों की संख्या 20 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
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(मनमोहन कथूरिया)