पटना : देश के महान स्वतंत्रता सेनानी, कवि और पत्रकार पं. माखन लाल चतुर्वेदी सच्चे अर्थों में भारतीय आत्मा थे। उन्हें यह महान संबोधन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दिया था। वे जीवन पर्यन्त राष्ट्र और राष्ट्रभाषा के लिए संघर्ष रत रहे। स्वतंत्रता संग्राम में जेल की यातनाएं भी भोगी और हिंदी के प्रश्न पर भारत सरकार को पद्मभूषण सम्मान भी वापस कर दिया। वे एक वलिदानी राष्ट्रप्रेमी थे।
उनके विपुल साहित्य के मूल में प्रेम और उत्सर्ग की भावना है। उनमें राष्ट्रप्रेम है प्रकृति प्रेम है और वह शाश्वत प्रेम भी है, जिसे मनुष्य का पांचवां पुरुषार्थ कहा जाता है। पुष्प की अभिलाषा का वह महान गीतकार, देश और देश के लिए मर मिटनेवाले लाखों वीर सपूतों की अशेष प्रेरणा है।
ये बातें साहित्य सम्मेलन में कवि की 130वीं जयंती पर आयोजित समारोह व कवि गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डा. अनिल सुलभ ने कही। डा. सुलभ ने कहा कि चतुर्वेदी जी अद्भूत प्रतिभा के कवि, पत्रकार और लेखक थे।
उनकी प्रथम काव्य पुस्तक, हिम किरीटिनी के लिए1943 में उन्हें तबके श्रेष्ठतम साहित्यिक सम्मान देव पुरस्कार से अलंकृत किया गया था। साहित्य अकादमी की ओर से हिंदी का प्रथम अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव भी उन्हें ही प्राप्त है। उनकी पुस्तक हिमतरंगिनी के लिए यह पुरस्कार 1954 में साहित्य अकादमी की स्थापना के बाद दिया गया था।
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