जम्मू-कश्मीर में गठबंधन की सरकार टूटने के बाद से ही सियासी घमासान मचा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने खुद पर लगे जम्मू और लद्दाख क्षेत्र के साथ भेदभाव वाले आरोपों पर पलटवार किया है। इस आरोपों पर मेहबूबा ने आश्चर्य जताया कि अगर यह सत्य है तो अबतक किसी भी बीजेपी मंत्री ने इसके बारे में क्यों नहीं कहा। उन्होंने कहा कि जम्मू और लद्दाख से भेदभाव के आरोप बिल्कुल निराधार हैं। पूर्व सीएम ने जोर देकर कहा कि घाटी पर ध्यान देना जरूरी था और अगर भेदभाव था तो पहले केंद्र या राज्य के समक्ष इस मुद्दे को क्यों नहीं उठाया गया।
महबूबा ने दो टूक कहा कि सरकार के हर फैसले में बीजेपी का समर्थन था। उन्होंने एक दिन पहले जम्मू में अमित शाह के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘हमारे पूर्व गठबंधन सहयोगी द्वारा हमारे खिलाफ कई झूठे आरोप लगाए गए। उन्होंने कहा, ‘एजेंडे के प्रति हमारी वचनबद्धता कभी भी अस्थिर नहीं हुई। इस एजेंडे के सह-लेखक बीजेपी नेता राम माधव थे और राजनाथ सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं ने इस एजेंडे का समर्थन किया था। उनके द्वारा अपनी ही पहल को अस्वीकार करना और इसे एक ‘नरम दृष्टिकोण’ करार देना दुखद है।’
महबूबा ने कहा, ‘अनुच्छेद 370 की यथास्थिति बनाए रखना, पाकिस्तान व हुर्रियत के साथ संवाद एजेंडे के हिस्से थे। संवाद को प्रोत्साहन, पत्थरबाजों के खिलाफ मामले वापस लेना और एकतरफा संघर्षविराम जमीन पर विश्वास बहाली के लिए अत्यंत जरूरी कदम थे. इसे भाजपा ने मान्यता और समर्थन दिया था।’ उन्होंने कहा, ‘जम्मू एवं लद्दाख के साथ भेदभाव के आरोपों का वास्तव में कोई आधार नहीं है। हां, (कश्मीर) घाटी में लंबे समय से उथल-पुथल रही है और 2014 की बाढ़ राज्य के लिए एक झटका थी, इसलिए यहां ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता थी।
इसका यह मतलब नहीं है कि किसी जगह कम विकास किया गया। ‘महबूबा ने कहा, ‘अगर कुछ है तो उन्हें (बीजेपी) अपने मंत्रियों के प्रदर्शन की समीक्षा करनी चाहिए, जो व्यापक रूप से जम्मू क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर ऐसी कोई चिंताएं थीं, तो उनमें से किसी ने भी राज्य या केंद्रीय स्तर पर पिछले तीन वर्षों के दौरान इसके बारे में बात क्यों नहीं की।’ महबूबा ने कहा कि रसाना दुष्कर्म व हत्या मामले को सीबीआई को नहीं सौंपने, दुष्कर्म समर्थक मंत्रियों को कैबिनेट से हटाने और गुर्जर व बकरवाल समुदाय का उत्पीड़न नहीं करने का आदेश जारी करना मुख्यमंत्री के रूप में उनके कर्तव्य को दर्शाता है।
उन्होंने कहा, ‘शुजात (बुखारी) की हत्या के बाद जम्मू एवं कश्मीर में अभिव्यक्ति की आजादी के बारे में चिंता जताने के बाद उनके विधायक अभी भी घाटी के पत्रकारों को धमका रहे हैं। तो अब वे उनके बारे में क्या करेंगे?’। बता दें कि जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू होने से पहले यहां की सीएम रहीं महबूबा मुफ्ती ने पिछले दिनों बीजेपी के समर्थन वापस लेने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद से जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा हुआ है।
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