आप जानते ही होंगे की आज भारत और चीन में बेहद तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई। हाल ही में दोकलाम से शुरू हुए विवाद ने भारत और चीन को एक दुसरे के सामने इन हालातों में लाकर खड़ा कर दिया है की दोनों देशों के बीच जंग होने का खतरा मंडराने लगा है। हर कोई जानता है की चीन भारत को दबाव में लाने की हर कोशिश कर रहा है पर बात नहीं बन पायी।
चीन ने भारत को 1962 की जंग में मिली हार भी याद दिलाई जिसका भारत के रक्षा मंत्री के करार जवाब दिया। लेकिन आज हम आपको भारत के इतिहास की ऐसी सच्चाई बताने जा रहे है जो आपको चौंका देगी। आप शायद नहीं जानते होंगे की देश के महान नेता की एक गलती की वजह से हम चीन से 1962 का युद्ध हार गए थे अगर उस वक्त के प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु ने एक अजीब शर्त हमारे साथी देश इजराइल के आगे न रखी होती तो आज हमे चीन से उस हार का दंश नहीं झेलना पड़ रहा होता।
इतिहास गवाह है की भारत में आज़ादी के बाद वर्षों तक राज़ करने वाली कांग्रेस पार्टी हमेशा से इजराइल के खिलाफ रही। इसी वजह से पिछले 70 सालों में देश के किसी प्रधानमंत्री ने इजराइल का दौरा तक नहीं किया था।
कांग्रेस पार्टी ने अपनी मुस्लिम वोट बैंक वाली राजनीति को बचाए रखने के लिए हमेशा इसराइल के विरोध किया और हमेशा ये तर्क दिया की इसराइल वर्षों से फिलिस्तीन के मुसलामानों के खिलाफ सैनिक कार्यवाही कर रहा है। इसलिए इजरायल जाना भारत के मुस्लिमों को नाराज करने जैसा है।
जब 1962 ने चीन ने भारत पर धोखे से हमला कर दिया तब तत्कालीन प्रधानमन्त्री नेहरु सबसे पहले इसराइल के पास ही मदद मांगने गए थे और इजरायल ने उस समय बिना सोचे समझे भारत की मदद के लिए हां बोल दिया पर भारतीय प्रधानमंत्री ने इसराइल के सामने अजीब शर्त रख दी की वो भारत की मदद तो करे पर जो हथियार वो भारत को युद्ध में मदद के लिए देगा उनपर इसराइल का मार्का नहीं होना चाहिए साथ ही मदद के लिए भारत आने वाले इजरायल के जहाजों पर उनका यानी कि इजरायल का झंडा न लगा हो।
इस शर्त पर इसराइल के पीएम ने भारत की मदद से इनकार कर दिया। युद्ध के दौरान जब चीन भारत पर पूरी तरह हावी होने लगा तब फिर एक बार इसराइल से मदद मांगी तब इसराइल की सेना बिना शर्त भारत का साथ देने आई पर तब तक काफी देर हो चुकी थी। अगर नेहरु जी ने इजरायल के सामने यह घटिया शर्त न रखी होती तो चीन के हावी होने से पहले इजरायल भारत की मदद करता और शायद भारत 1962 की जंग न हारता।