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राजनीतिक प्रक्रिया को अमल में लाने के लिए राज्य को मरहम रखने की नीति की जरूरत : मुफ्ती

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जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि राजनीतिक प्रक्रिया को अमल में लाने के लिए राज्य को मरहम रखने की नीति की जरूरत है। महबूबा ने कहा कि आतंकियों के सफाए मात्र से राज्य की समस्याएं सुलझ नहीं जाएंगी। इसके साथ ही उन्होंने आतंकवाद, लड़ाई और करवाई पर जारी वर्तमान विमर्श में बदलाव की मांग की।  उन्होंने कहा, सेना और अन्य सुरक्षा बलों के कर्मियों को ऐसा लगता है कि उन्होंने अपना काम बहुत हद तक पूरा किया है। अब राजनीतिक प्रक्रिया को अमल में लाने के लिए सहानुभूतिपूर्ण नीति की आवश्यकता है।

इंडिया फाउंडेशन की पहल इंडिया आइडियाज कॉनक्लेव 2017 के एक संवाद सत्र के दौरान कल शाम महबूबा ने कहा, उन्होंने (सुरक्षा बलों) एक सहायक माहौल तैयार किया। पुलिस और सुरक्षा बलों के बीच यह आम भावना है कि वह अपना काम कर रहे हैं, लेकिन वह अकेले ऐसा नहीं कर सकते।

महबूबा घाटी में अलगाववादी तत्वों को लेकर नरम रवैया अपनाने की संभावना पर आधारित एक सवाल का जवाब दे रही थीं। उन्होंने कहा, हमें मरहम रखने की नीति की जरूरत है, इसका मतलब नरम रवैया अपनाने से नहीं है। यदि कल को अदालत मसर्त आलम (कट्टरपंथी अलगाववादी नेता) को छोड़ने को कहती है तो लोकतंत्र में हम क्या कर सकते हैं? अगर वह (आलम) उच्चतम न्यायालय चला जाता है और शीर्ष न्यायालय कहता है कि अभी उसके खिलाफ कुछ भी नहीं है और आप उसे कैद करके नहीं रख सकते तो आप क्या करेंगे?

उन्होंने कहा, क्या आप इससे इनकार कर देंगे?। 1 आप ऐसा नहीं कर सकते। आपके यहां ये संस्थान हैं, हम एक व्यक्ति की वजह से इन संस्थानों के महत्व को कम नहीं कर सकते क्योंकि एक व्यक्ति तबाही नहीं ला सकता। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से आतंकियों का सफाया कर देने से समस्या पूरी तरह नहीं सुलझेगी।

महबूबा ने कहा, अगर हम 200 आतंकियों का खात्मा करेंगे तो पाकिस्तान से 200 और आ जाएंगे, ऐसे में क्या करें?

महबूबा ने कहा, हमें वही करने की जरूरत है जो अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में किया गया था। मुझे विश्वास है कि हालात को बदला जा सकेगा। वह पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा पाकिस्तान को लेकर शुरू की गई शांति पहलों का जिक्र कर रहीं थी। पीडीपी की नेता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को लेकर विमर्श बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा, वर्तमान में विमर्श आतंकवाद, लड़ई और कार्वाई को लेकर है। विमर्श बदलने की जरूरत है और इसमें पूरे देश की मदद की जरूरत है।

उन्होंने अपने पिता दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद को याद करते हुए कहा, ऐसा नहीं है कि आप एक गोली देंगे और रातोरात सबकुछ बदल जाएगा। मुझे याद है जब मैं छोटी थी तब लोग कहा करते थे कि मुफ्ती साहब बहुत अच्छे हैं पर हिंदुस्तानी हैं। मुझे समझ नहीं आता कि वह अच्छे व्यक्ति थे तो ऐसा क्यों कहा जा रहा था कि वह हिंदुस्तानी हैं।

उन्होंने कहा, मेरे लिए तो भारत का मतलब इंदिरा (गांधी) था, मेरे लिए भारत का मतलब ताजमहल था…हम वे फिल्में देखा करते थे। (जम्मू-कश्मीर) में मेरी तरह लाखों लोग हैं जो भारत को समझते हैं। ऐसे लोग भी हैं, हालांकि उनकी संख्या कम है, जो इसमें विश्वास नहीं रखते। महबूबा ने कहा कि घाटी में ऐसे कई लोग हैं जो कठिन परिस्थितियों में फंस गए। उन्होंने कहा, हम इस स्थिति से जितनी जल्दी हो सके, निकलेंगे, आपको कश्मीरियों को राष्ट्रवाद सिखाने की कोई जरूरत नहीं होगी बल्कि वे ही आपको यह (राष्ट्रवाद) सिखा देंगे।

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