सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे जज लोया की मौत के मामले में जांच के लिए सभी विपक्षी दलों की आज एक अहम बैठक हुई। जिसमे विपक्ष सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया है। कांग्रेस की अगुवाई में 7 विपक्षी दलों ने राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू से मुलाकात कर उन्हें ये प्रस्ताव सौंपा। शुक्रवार को विपक्षी पार्टियों की कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद की अगुवाई में बैठक हुई। इसके बाद कई विपक्षी दलों के नेता उपराष्ट्रपति को प्रस्ताव सौंपने पहुंचे।
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि हम लोग ये प्रस्ताव एक हफ्ते पहले ही पेश करना चाहते थे, लेकिन उपराष्ट्रपति जी के पास समय नहीं था। आज हमने राज्यसभा की 7 राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर राज्यसभा चेयरमैन को महाभियोग का प्रस्ताव सौंप दिया है। उन्होंने कहा कि 71 सांसदों के हस्ताक्षरों के साथ ये प्रस्ताव सौंपा है। इनमें 7 रिटायर हो चुके हैं। हालांकि, फिर भी यह जरूरी संख्या से अधिक है। उन्होंने कहा कि ये प्रस्ताव 5 बिंदुओं के आधार पर पेश किया गया है।
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान के तहत अगर कोई जज दुर्व्यवहार करता है तो संसद का अधिकार है कि उसकी जांच होनी चाहिए। सिब्बल ने कहा कि हम अपनी चिट्ठी में लिखा है काश हमें ये दिन नहीं देखना पड़ता। सिब्बल ने कहा कि जब से दीपक मिश्रा चीफ जस्टिस बने हैं तभी से कुछ ऐसे फैसले लिए गए हैं जो कि सही नहीं हैं। इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट के ही चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी।
सिब्बल ने कहा कि हमारे पास महाभियोग लाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। सिब्बल बोले कि हमें उम्मीद थी कि जजों की जो नाराज़गी है, उन सभी को भी ध्यान में रखा जाएगा और कुछ बदलाव आएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्या देश के लोग सबसे बड़े संस्थान को ऐसे स्थिति में ही देखते रहें। जिन मामलों को ध्यान में रखते हुए ये महाभियोग लाया गया है, उनमें पहला प्रसाद ऐजुकेशनल केस है।
चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लेकर उपराष्ट्रपति से मिलने पहुंचे विपक्षी नेताओं में गुलाम नबी आजाद, केटीएस तुलसी, अभिषेक मनु सिंघवी, कपिल सिब्बल, एनसीपी की वंदना चौहान, सीपीआई के डी. राजा शामिल हैं। हालांकि, आरजेडी और टीएमसी अभी महाभियोग प्रस्ताव की मुहिम से दूरी बनाए हुए हैं।
विपक्षी पार्टियों के साथ बैठक करने के बाद गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि हम महाभियोग का प्रस्ताव देने के लिए उपराष्ट्रपति के पास जा रहे हैं। हमें सात पार्टियों का समर्थन है, इसमें कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, एनसीपी, बीएसपी, मुस्लिम लीग और समाजवादी पार्टी शामिल हैं। सूत्रों की मानें तो 50 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षरों के साथ महाभियोग का प्रस्ताव तैयार है, और इस राज्यसभा चेयरमैन के साथ मुलाकात में ये प्रस्ताव पेश किया जा सकता है. बताया जा रहा है कि नायडू इस विषय पर एक कमेटी का भी गठन कर सकते हैं।
इन पांच तथ्यों पर लाया गया महाभियोग
1. मुख्य न्यायाधीश के पद के अनुरुप आचरण ना होना, प्रसार ऐजुकेशन ट्रस्ट में फायदा उठाने का आरोप. इसमें मुख्य न्यायाधीश का नाम आने के बाद सघन जांच की जरूरत.
2. प्रसार ऐजुकेशन ट्रस्ट का सामना जब CJI के सामने आया तो उन्होंने CJI ने न्यायिक और प्रशासनिक प्रक्रिया को किनारे किया.
3. बिना तारीख के फैसला जारी करना.
4. जमीन का अधिग्रहण करना, फर्जी एफिडेविट लगाना और सुप्रीम कोर्ट जज बनने के बाद 2013 में जमीन को सरेंडर करना.
5. कई संवेदनशील मामलों को चुनिंदा बेंच को देना.
क्या है प्रक्रिया?
बता दें कि CJI के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है. हस्ताक्षर होने के बाद प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है। यह प्रस्ताव राज्यसभा चेयरमैन या लोकसभा स्पीकर में से किसी एक को सौंपना पड़ता है।
जिसके बाद राज्यसभा चेयरमैन या लोकसभा स्पीकर पर निर्भर करता है कि वह प्रस्ताव को रद्द करे या स्वीकार करे.अगर राज्यसभा चेयरमैन या लोकसभा स्पीकर प्रस्ताव मंजूर कर लेते हैं तो आरोप की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया जाता है। इस कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद् शामिल होता है।
इसके बाद अगर कमेटी जज को दोषी पाती है तो जिस सदन में प्रस्ताव दिया गया है, वहां इस रिपोर्ट को पेश किया जाता है. यह रिपोर्ट दूसरे सदन को भी भेजी जाती है। जांच रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से समर्थन मिलने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए चीफ जस्टिस को हटाने का आदेश दे सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को लगाई है फटकार
सीबीआई जज बीएच लोया की मौत मामले में एसआईटी जांच वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं को कड़ी फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईटी जांच वाली याचिका में कोई दम नहीं है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसी याचिकाओं के लिए कोर्ट के पास समय नहीं है। इससे कोर्ट का वक्त बर्बाद होता है।
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