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बौद्ध परिपथ योजना को महज एक लाख रुपये के आवंटन पर संसदीय समिति ने सरकार को लताड़ा

जुलाई 2012 में जीका ने परियोजना स्थलों की जमीनी सच्चाई में मूलभूत बदलाव आने का हवाला देते हुए परियोजना को जारी रख पाने में असमर्थता व्यक्त कर दी।

विश्व भर में आकर्षण का केन्द्र रहे भगवान बुद्ध के जीवन दर्शन से जुड़े प्रमुख स्थलों को पर्यटन मानचित्र से जोड़ने वाली महत्वाकांक्षी योजना ‘बुद्ध परिपथ’ (सर्किट) वित्तीय आवंटन की भारी कमी से जूझ रही है। संसद की एक समिति ने 1985 में शुरु की गयी इस योजना के लिए बेहद कम राशि का आवंटन करने के लिए सरकार को आड़े हाथों लिया है। ‘बुद्ध परिपथ’ परियोजना के लिए पर्यटन मंत्रालय द्वारा चालू वित्त वर्ष में अब तक महज एक लाख रुपये जारी किए गए हैं।

परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में परियोजना की धीमी गति का जिक्र करते हुये यह जानकारी दी गई है। ‘भारत में बौद्ध परिपथ के विकास’ पर संसद के दोनों सदनों में शुक्रवार को पेश रिपोर्ट के अनुसार, पर्यटन मंत्रालय द्वारा वित्तीय वर्ष 2018-19 में बौद्ध परिपथ के विकास के लिये 0.01 करोड़ रुपये की नाममात्र की राशि आवंटित की गई है।

तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट के अनुसार, पर्यटन मंत्रालय के पास इस साल 2150 करोड़ रुपये का कुल बजट है। इसमें से 1100 करोड़ रुपये ‘स्वदेश दर्शन योजना’ और 150 करोड़ रुपये ‘प्रसाद योजना’ के लिये आवंटित किए गए हैं। बौद्ध परिपथ के विकास के लिये महज एक लाख रुपये के आवंटन को नगण्य बताते हुए समिति ने कहा ‘‘इस सांकेतिक राशि का आवंटन बौद्ध परिपथ के विकास के लिए पूरी तरह से अपर्याप्त है।

समिति को यह कहते हुए निराशा होती है कि इस सांकेतिक राशि का आवंटन बहुत ही अव्यवहारिक है।’’ इतना ही नहीं समिति ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा ‘‘एक निवेशयोग्य, सम्मान के हकदार, जीवंत और व्यवहार्य पर्यटन गंतव्य के रूप में बौद्ध परिपथ के विकास के लिए यह लापरवाहीपूर्ण रवैये का उदाहरण है।’’ रिपोर्ट में समिति ने इस परियोजना के महत्व और इसके प्रति सरकारों की उदासीनता को उजागर करते हुए कहा है कि 1885 में इस योजना की अवधारणा के समय से ही बौद्ध परिपथ की विकास गति बहुत धीमी है।

इसमें राशि की ही कमी नहीं रही बल्कि इसके कार्यान्वयन में भी कमी रही। उल्लेखनीय है कि इस योजना में वित्तीय संसाधनों की कमी को दूर करने के लिये 2005 में केन्द्र सरकार ने जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जीका) के साथ 396 करोड़ रुपये का समझौता कर योजना के दूसरे चरण को शुरु किया। जुलाई 2012 में जीका ने परियोजना स्थलों की जमीनी सच्चाई में मूलभूत बदलाव आने का हवाला देते हुए परियोजना को जारी रख पाने में असमर्थता व्यक्त कर दी।

समिति ने जीका की रिपोर्ट के आधार पर 2012 में इस परियोजना को बंद करने के सरकार के फैसले का हवाला देते हुये कहा ‘‘यह परियोजना में समन्वय और कार्यान्वयन की कमी का उदाहरण है। ऐसे अवसरों का समाप्त होना परिपथ के विकास में अत्यधिक बाधक है।’’ समिति को मंत्रालय ने बताया कि बौद्ध परिपथ विकास के लिए पृथक बजट आवंटन नहीं है। मंत्रालय ने 2014-15 में स्वदेश दर्शन योजना के तहत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात और आंध्र प्रदेश में भगवान बुद्ध से जुड़े स्थलों को जोड़ने वाले बौद्ध परिपथ के विकास के लिये वर्ष 2016-18 के लिए स्वीकृत 361.97 करोड़ रुपये में से केवल 72.4 करोड़ रुपये जारी किये।

समिति ने इस योजना में विश्व बैंक की मदद के बावजूद अब तक हुए काम के परिणाम को निराशाजनक बताते हुये इसमें संबद्ध राज्य सरकारों की भागीदारी बढ़ाने की सिफारिश की है। उल्लेखनीय है कि इस योजना के तहत मध्य प्रदेश में सांची, सतना, रीवा, मंदसौर और धार, उत्तर प्रदेश में श्रावस्ती, कुशीनगर एवं कपिलवस्तु, बिहार में बोधगया और राजगीर, गुजरात में जूनागढ़, गिर, सोमनाथ, भरूच, कच्छ, भावनगर, राजकोट, मेहसाणा तथा आंध्र प्रदेश में शालिहुंडम, थोटनाकोंडा, बाविकोंडा, बोजनाकोंडा और अमरावती को परिपथ के माध्यम से विभिन्न मार्गों से जोड़ते हुए इन स्थलों को पर्यटन सुविधाओं से लैस करना है।

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