हिंदी के वयोवृद्ध कवि एवं संत साहित्य के विद्वान बलदेव वंशी का कल रात दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे। उनके परिवार में दो पुत्र हैं। उनकी पत्नी का पहले ही निधन हो गया था। पाकिस्तान के मुल्तान में एक जून 1938 में जन्मे वंशी हिंदी में विचार कविता आंदोलन के प्रवर्तक थे और इस नाम से एक पत्रिका भी निकालते रहें।
वंशी के पुत्र सुरेंद्र भसीन ने बताया कि उनके पिता कल विश्व पुस्तक मेले में गए थे और रात आठ बजे घर लौटे। उसी समय उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद उन्हें फरीदाबाद के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्होंने रात दस बजकर बीस मिनट पर अंतिम सांस ली। वंशी सत्तर के दशक में उभरे कवि थे।
उन्होंने भारतीय भाषा आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था और हिंदी के लिए संघ लोक सेवा आयोग के भवन के समक्ष कई वर्षों तक धरना दिया तथा इस आंदोलन में निर्णायक भूमिका निभायी। वह दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक भी रहें। उन्होंने मौलिक और संपादित करीब 200 किताबें लिखी थी।
उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान हरियाणा साहित्य अकादमी, कबीर सम्मान और हिंदी अकादमी के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह संत साहित्य के विशेषज्ञ थे। इतिहास में आग, दर्शक दीर्घा में, उपनगर में वापसी, दादू ग्रंथावली, मलूकदास ग्रंथावली आदि उनकी चर्चित कृतियां हैं। भक्ति आंदोलन में कवयित्रियों और मलू़कदास पर लिखी गयी उनकी पुस्तकें काफी प्रसिद्ध रहीं।
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