पटियाला की केंद्रीय जेल में पिछले 22 सालों से नजरबंद और फांसी की सजायाफता आतंकी बलवंत सिंह राजोवाना के मामले में शिरोमणि अकाली दल और शिरोमणि कमेटी बुरी तरह फंसी नजर आ रही है और आने वाले दिनों में राजोवाना का मामला एसजीपीसी और शिरोमणि अकाली दल के लिए गले की हडडी बन सकता है।
स्मरण रहे कि जेल से जारी किए गए अपने खत में भाई बलवंत सिंह राजोवाना ने भूख हड़ताल शुरू करने से पहले शिरोमणि कमेटी के तत्कालीन पदाधिकारियों को अपना निशाना बनाते हुए कहा कि उन्हें अदालत द्वारा 2007 में फांसी की सजा दी गई थी परंतु 2007 में सिखों के रोष और जज्बात को देखते हुए भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति को मेरी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की अपील कर दी गई। जिस कारण राष्ट्रपति द्वारा केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय में फांसी की मौत पर स्टे लगाते हुए पुर्न विचार करने के लिए वापिस भेज दिया गया।
राजोवाना ने गुस्सा जाहिर करते हुए स्पष्ट किया कि वह पिछले 6 सालों से फांसी वाली कालकोठरी में लगातार मौत का इंतजार कर रहा है परंतु फांसी की सजा को उम्रकैद में तबदील करने संबंधित अपील पर शिरोमणि कमेटी और अकाली दल ने कोई भी पैरवी या कार्यवाही ना की। जिस कारण मेरी सजा की स्थिति उलझी हुई है। ना मैं जीवित और ना ही मरों में शामिल हूं।
स्मरण रहे कि भाई बलवंत सिंह राजोवाना पंजाब के मुख्यमंत्री स. बेअंत सिंह की हत्या किए जाने के कारण 22 दिसंंबर 1995 को गिरफतारी के उपरांत अब तक जेल में है और इस केस की चंडीगढ़ सेशन कोर्ट में राजोआना को 31 जुलाई 2007 को फांसी पर लटकाए जाने की सजा सुनाई थी और इसी संंबंध में सेशन कोर्ट ने मार्च 2012 में डैथ वारंट जारी करके 31 मार्च 2012 को भाई राजोवाना केा फांसी दे देने का हुकम सुनाया था।
इस दौरान पंजाब की सडक़ों पर हजारों की संख्या में सिख युवकों ने रोष प्रदर्शन करके फांसी के फैसले का विरोध किया था। उसी वक्त एसजीपीसी ने तत्कालीन राष्ट्रपति के पास अपील दायर करते हुए राजोवाना की फांसी पर रोक लगाने और फांसी की सजा को उम्रकैद में तबदील किए जाने की मांग की थी। जबकि राष्ट्रपति ने राजोवाना की फांसी पर रोक लगाकर इस अपील पर अगली कार्यवाही करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्रालय को भेज दिया था।
– सुनीलराय कामरेड