लुधियाना : ‘अगर मैं चुप रहा, तो मर जावांगा, अगर मैं बोला तो मार दिया जावांगा ‘ । पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के एक शायर का उपरोक्त शेर गौरी लंकेश पर पूरा उतरता है। चुप रहकर मरने से गौरी लंकेश ने बोलकर मरने को तरजीह दी। पिछले हफते की एक शाम बंगलूर में बेखौफ लेखनी ओर बेजुबान की मालिक कन्नड़ और अंग्रेजी भाषाओं की प्रसिद्ध पत्रकार गौरी लंकेश को उसके घर के बाहर ही गोलियां मारकर मार दिया गया। 55 वर्षीय गौरी, ‘लंकेश पत्रिका ‘ सप्ताहिक की संपादक थी। वह गुजरात के दंगों के बारे में खोजी पत्रकार राणा अयूब द्वारा लिखित किताब गुजरात फाइलस को कन्नड़ भाषा में अनुवाद करने के बाद चर्चा में आई थी। वह कन्नड़ भाषा के साहित्यकार और र्निपक्ष पत्रकार लंकेश की बेटी थी। पिता की मौत के बाद विरासत को गौरी ने आगे बढ़ाया और वह भी पिता की तरह विद्रोही सुर वाली बेखौफ पत्रकार के तौर पर प्रसिद्ध हुई।
उसने सियासतदानों के खिलाफ जमकर मोर्चा लिया और भ्रष्ट नेताओं और अपराधी तत्वों को नंगा करने का बीड़ा उठा रखा था। शायद इसी कारण गौरी को सच की कीमत अदा करनी पड़ी और वह भी विद्वान नरेंद्र दाभोलकर, गोबिंद पंसारे और एमएम कुलबुरगी आदि की श्रेणी में आ गई।
आज पूरे देश में गौरी के कत्ल को लेकर सियासत शुरू हुई है। कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, संघ परिवार समेत दूसरी सियासी पार्टियां एक-दूसरे के विरूद्ध बयानबाजी में मशगूल है। कही ज्ञापन देकर प्रदर्शन किए जा रहे है तो कही बुद्धिजीव और पत्रकार मोमबत्तियां जलाकर इंसाफ की दुहाई मांग रहे है। ऐसे में पंजाब एक गांव में किसान परिवार से संबंधित मूर्तिकार ने अपनी कल्पना और उंगलियों के माध्यम से गीली मिटटी को उकेरा और तैयार कर दी एक और गौरी लंकेश जो अब बोली या तब बोली बस देखकर यही लगता है कि वह सब बोली…।
– सुनीलराय कामरेड