छतीसगढ़ में संविलियन के मुद्दे पर बेमियादी हड़ताल पर डटे शिक्षा कर्मियों का रूख और आक्रामक हो गया है। सरकार की ओर से मांगें खारिज करने के बाद शिक्षा कर्मियों ने परिवार समेत डेरा डालने की तैयारी कर ली है। हालांकि प्रशासन की ओर से धरना स्थल पर राजधानी पहुंचने से पहले ही जिलों की सीमाओं में शिक्षा कर्मियों की धरपकड़ भी शुरू कर दी है। इधर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने दो टूक कह दिया कि सरकार शिक्षा कर्मियों के दबाव के सामने कतई नहीं झुकने वाली। उन्होंने दोहराया कि संविलियन का सरकार का फिलहाल कोई ईरादा नहीं है।
इस मामले में सरकार आंदोलनकारियों की जिद के आगे घुटने नहीं टेकेगी। इधर सरकार के कड़े रूख और मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद शिक्षा कर्मियों की बर्खास्तगी का दौर भी शुरू हो गया है। हालांकि बर्खास्तगी के तकनीकी पहलुओं पर भी बहस छिड़ी हुई हे। दरअसल, शिक्षा कर्मियों की नियुक्ति पंचायतों के जरिए हुई है। इसलिए उन्हें जनपद और जिला पंचायतों के प्रस्ताव के आधार पर ही बर्खास्त किया जा सकता है।
जबकि सरकार के आदेश पर सीधे बर्खास्तगी का पत्र थमाया जा रहा है। विपक्ष ने प्रदेश में कांग्रेसी कब्जे वाले जनपद और जिला पंचायतों में उनके समर्थन में बर्खास्तगी का कोई प्रस्ताव पारित नहीं करने का निर्णय लिया है। इधर मुख्यमंत्री के रूख से साफ है कि सरकार कम से कम संविलियन को लेकर फैसले के मूड में नहीं है। जबकि शिक्षा कर्मी इसी मांग पर अड़े हुए हैं।
इस वजह से प्रदेश में दूरस्थ अंचलों में और विशेष तौर पर एकल शिखा कर्मियों के भरोसे चलने वाले स्कूलों में तालेबंदी की नौबत आ गई है। वहीं पढ़ाई ठप होने के बाद सरकार की ओर से वैकल्पिक व्यवस्था करने के दावे किए गए हैं। इसके बावजूद स्कूलों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। सरकार ने सातवें वेतनमान का लाभ देकर जरूर संतुष्ट करने की कोशिशें की है पर शिक्षा कर्मी इसे पर्याप्त नहीं मान रहे हैं।