पटना : लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने विधायिका और न्यायपालिका के रिश्ते को बहुत नाजुक एवं संवेदनशील बताया और कहा कि कई मामलों में न्यायपालिका की अति सक्रियता रहने के बावजूद वह उसके साथ टकराव नहीं चाहती हैं। श्रीमती महाजन ने राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) के भारतीय प्रक्षेत्र के छठे सम्मेलन के समापन के बाद आज यहां संवाददाता सम्मेलन कहा कि सीपीए के सम्मेलन का एक विषय ‘विधायिका और न्यायपालिका : लोकतंत्र के दो महत्वपूर्ण स्तंभ’ था जिसपर केन्द्रीय विधि और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने चर्चा आरंभ की।
इस चर्चा के दौरान कई सदस्यों का मानना था कि न्यायपालिका की सक्रियता ज्यादा बढ़ रही है वहीं, कुछ सदस्यों का कहना था कि शायद विधायिका ज्यादा कुछ नहीं कर रही है, जिसके कारण न्यायपालिका की सक्रियता बढ़ा है। उन्होंने कहा कि इस चर्चा में सदस्यों के संतुलित विचार थे। लोकसभा और सीपीए के भारतीय प्रक्षेत्र की अध्यक्ष श्रीमती महाजन ने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर जो न्यायालय का हस्तक्षेप हुआ उस पर भी सम्मेलन में चर्चा हुई।
उन्होंने कहा कि कई बार न्यायालय ने लोकसभा और विधानसभाओं के अध्यक्ष के फैसले पर हस्तक्षेप करने से इनकार किया है वहीं कई बार अदालत ने हस्तक्षेप किया है। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद वह न्यायपालिका के साथ टकराव नहीं चाहती हैं। श्रीमती महाजन ने इससे पूर्व सम्मेलन के समापन भाषण में भी कहा था कि‘विधायिका और न्यायपालिका लोकतंत्र के दो महत्वपूर्ण स्तंभ’बहुत लंबे समय से लंबित न्यायिक सुधारों के लिए सरकार की ओर से किये जा रहे प्रयत्नों के मद्देनजर बहुत प्रसांगिक हैं।
विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र हैं। राज्य के ये तीनों अंग एक दूसरे के पूरक हैं क्योंकि तीनों लोगों की भलाई के लिए सामूहिक रूप से कार्य करते हैं। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि संविधान में न्यायपालिका को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की अंतिम रूप से व्याख्या करने का अधिकार है।
उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने न्यायपालिका को न्यायिक समीक्षा का अधिकार प्रदान किया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य के विभिन्न अंग संविधान के तंत्र के अंतर्गत निर्धारित संवैधानिक मर्यादाओं के भीतर ही काम करें। ऐसे में निश्चित रूप से न्यायपालिका की जिम्मेवारी ज्यादा है। श्रीमती महाजन ने कहा कि सम्मेलन का एक अन्य विषय ‘सतत विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति में संसद की भूमिका’ था। इस पर चर्चा की शुरुआत लोकसभा की प्राक्कलन समिति के सभापति डॉ.मुरली मनोहर जोशी ने की।
उन्होंने कहा कि जन प्रतिनिधि के रूप में विकास हासिल करने के लिए नये तरीके तलाशने चाहिए और उन्हें निरंतर बनाये रखना चाहिए तभी एक मजबूत समाज का निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2020-30 के लिए सतत विकास का लक्ष्य निर्धारित किया गया है और इसे सबके सहयोग के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि उन्हें खुशी है कि इस बार बिहार विधानसभा के बजट सत्र के दौरान एक दिन सतत विकास में जन प्रतिनिधियों की भूमिका विषय पर विशेष चर्चा होगी।
उन्होंने कहा कि जिम्मेवार, समावेशी, भागीदारीपूर्ण और पारदर्शी प्रशासन सुनिश्चित करने में सांसदों और विधायकों की महत्वपूर्ण भूमिका है और इनके जरिये विकास कार्यों को प्रभावी रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है। श्रीमती महाजन ने कहा कि एक सांसद के रूप में उन्हें लगता है कि ज्ञान निर्माण और श्रेष्ठ संसदीय नियमों तथा पद्धतियों एवं प्रक्रियाओं को किस तरह संस्थागत किये जाने की जरूरत है, जिससे क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर विकास कार्यों को करने में सुविधा हो तथा मतदाताओं का अधिक से अधिक कल्याण हो सके।
उन्होंने कहा कि इसी उद्देश्य से अध्यक्षीय शोध पहल (एसआरआई) की शुरुआत की गयी है। जिसमें सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर विषय के विशेषज्ञ को बुलाकर सांसदों के साथ चर्चा होती है। एसआरआई आवश्यकतानुसार सभी राज्य शाखाओं को ऐसी सेवायें और सहयोग प्रदान कर सकता है।
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