उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) कानून से संबंधित अपने आदेश में आज भी रोक लगाने से इन्कार कर दिया, साथ ही एक बार फिर स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी से पहले शिकायत की जांच करने का आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 में व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों पर आधारित है, जिसे संसद भी नजरंदाज नहीं कर सकती।
न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की खंडपीठ ने केंद्र सरकार की पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि गिरफ्तारी से पहले शिकायत की जांच करने का आदेश संविधान की धारा-21 में व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर आधारित है। न्यायालय ने कहा कि संसद भी अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार एवं निष्पक्ष प्रक्रिया को नजरअंदाज करने वाला कानून नहीं बना सकता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह कैसा सभ्य समाज है, जहां किसी के एकतरफा बयान पर लोगों की कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है। न्यायालय ने मामले की सुनवाई जुलाई तक के लिए मुल्तवी कर दी, लेकिन उसने गत 20 मार्च के आदेश पर कोई रोक लगाने से एक बार फिर इन्कार कर दिया।
श्री वेणुगोपाल ने कहा है कि शीर्ष अदालत के 20 मार्च के फैसले ने मुख्य कानून की धाराओं को कमजोर कर दिया है। यह फैसला संविधान में दी गई शक्तियों के बंटवारे का उल्लंघन है। फैसले का हालिया आदेश कानून का उल्लंघन है और इसने देश को बहुत नुकसान पहुंचाया है।
गौरतलब है कि गत तीन मई को सुनवाई के दौरान एटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा था कि हजारों साल से वंचित तबके को अब सम्मान मिलना शुरू हुआ है। न्यायालय का संबंधित फैसला इस तबके के लिए बुरी भावना रखने वालों का मनोबल बढ़ने वाला है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी से पहले आरोपों की प्रारम्भिक जांच जरूरी है। इतना ही नहीं, गिरफ्तारी से पहले जमानत भी मंजूर की जा सकती है। न्यायालय ने एससी/एसटी अधिनियम 1989 के संबंध में नये दिशानिर्देश जारी किये हैं। पीठ ने गिरफ्तारी से पहले मंजूर होने वाली जमानत में रुकावट को भी खत्म कर दिया है। ऐसे में अब दुर्भावना के तहत दर्ज कराये गये मामलों में अग्रिम जमानत भी मंजूर हो सकेगी। न्यायालय ने माना है कि एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग हो रहा है।
पीठ ने नये दिशानिर्देश के तहत किसी भी सरकारी अधिकारी पर मुकदमा दर्ज करने से पहले पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) स्तर का अधिकारी प्रारंभिक जांच करेगा। किसी सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी से पहले उसके उच्चाधिकारी से अनुमति जरूरी होगी। इस फैसले के बाद देश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गयी थी। इसी की पृष्ठभूमि में दो अप्रैल को देश भर में जोरदार आंदोलन भी हुआ था, अंतत: केंद्र सरकार ने न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर की है।
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