सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार बैंकिंग धोखाधड़ियों को रोकने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने ”केवल कुछ आतंकवादियों को पकड़ने के लिए” पूरी जनता से अपने मोबाइल फोन आधार से जोड़ने के लिए कहने पर केन्द्र पर सवाल खड़े किए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि बैंक अधिकारियों की धोखाधड़ी करने वालों से ”साठगांठ” होती है। अदालत ने कहा कि ऐसा नहीं है कि घोटाले इसलिए होते हैं क्योंकि अपराधी अज्ञात होते हैं। अदालत ने ये टिप्पणियां उस समय कीं जब केन्द्र ने दलील दी कि आधार आतंकवाद और बैंक संबंधी धोखाधड़ी जैसी समस्याओं पर रोक लगाने में मदद करेगा।
न्यायालय ने सवाल किया कि अगर कल को अधिकारी प्रशासनिक आदेशों के जरिये नागरिकों से आधार के तहत डीएनए और रक्त के नमूने देने के लिए कहने लगें तो क्या होगा। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने आधार और इसके 2016 के कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केन्द्र की दलील पर पहली नजर में असहमति जताई और कहा कि आधार बैंकिंग धोखाधड़ी का ”समाधान नहीं” है।
पीठ ने कहा, ”धोखाधड़ी करने वालों की पहचान के बारे में कोई संदेह नहीं है। बैंक जानती है कि वह किसे ऋण दे रही है और बैंक अधिकारियों की धोखाधड़ी करने वालों से साठगांठ होती है। आधार इसे रोकने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकता।” इस पीठ में न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण भी शामिल थे।
पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा कि बैंकिंग धोखाधड़ी कई पहचान पत्रों के कारण नहीं होता है। केन्द्र का कहना है कि बायोमैट्रिक्स सुरक्षित हैं और ये ”धन शोधन, बैंक धोखाधड़ी, आयकर चोरी और आतंकवाद” जैसी समस्याओं का समाधान कर सकती है। पीठ ने कहा कि आधार मनरेगा जैसी योजनाओं के फर्जी लाभार्थियों को खोज निकालने में अधिकारियों की मदद कर सकता है।
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