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मौजूदा कॉलेजियम व्यवस्था का लोकतांत्रिकरण होना चाहिए : माधव आंनद

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पटना : रालोसपा के राष्ट्रीय महासचिव सह प्रवक्ता माधव आंनद ने प्रेस बयान जारी कर कहा कि मैं स्वयं एवं हमारी पार्टी सामाजिक न्याय के साथ हमेशा खड़ी रही हैं। हम सभी अपने समाज में जागरूकता लाना चाहते है। 20 मई 2018 को दिल्ली में ‘हल्ला बोल दरवाजा खोल’ कार्यक्रम के तहत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम व्यवस्था में पारदर्शिता का अभाव को लेकर सामाजिक आंदोलन का शंखनाद किया गया।

उन्होंने सभी दलों को दलगत भावना से ऊपर उठकर समाज के साथ खड़े होने की आवश्यकता पर बल दिया । इस कॉलेजियम व्यवस्था का लोकतांत्रिकरण होना चाहिए। उन्होंने उच्चतर न्यायपालिका में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और दलित समुदाय के साथ-साथ पिछड़े एवं सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को भी अधिक प्रतिनिधित्व दिए जाने के लिए अपील किया। न्यायपालिका में नियुक्तियां ‘अपारदर्शी’ और अलोकतांत्रिक तरीके से किए जाने की बात भी कही। साथ ही यह भी कहा कि दलित या पिछड़े वर्ग के लिए ही नहीं बल्कि आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए भी उच्चतर न्यायपालिका का द्वार बंद है।

यहां तक कि न्यायाधीश बनने के इच्छुक मेधावी छात्रों के लिए भी दरवाजे बंद है। हम चाहते है कि यह दरवाजे खुलें। कॉलेजियम व्यवस्था में ‘भाई-भतीजावाद’ का बोलबाला है इसके खिलाफ़ इस हल्ला बोल दरवाज़ा खोल अभियान को हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व पुरे देश में ले जाएंगे। जिसकी पहली शुरुआत 5 मई को पटना से करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि कॉलेजियम व्यवस्था के तहत लोग भाई – भतीजावाद में शामिल हैं और न्यायाधीश सिर्फ अपने ‘उत्तराधिकारियों’ को चुनने के लिए ही चिंतित है।

यदि एक चाय विक्रेता प्रधानमंत्री बन सकता है और एक मछुआरा समुदाय का बेटा देश का राष्ट्रपति बन सकता है तो फिर क्यों कमजोर तबके को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। मौजूदा स्वरूप में कॉलेजियम व्यवस्था भारतीय लोकतंत्र पर काला धब्बा है। इसलिए सभी दलों को मिलकर इसके विरुद्ध आवाज उठाने की आवश्यकता है। ताकि वंचितो को भी इसका अधिकार मिले। जिससे आमलोगों में भी कानून के प्रति विश्वास प्रबल होगा।

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