1971 के भारत-पाक युद्ध के हीरो रहे सैम मानेकशॉ को भला कौन भूल सकता है। उनकी बहादुरी और चतुराई की बदौलत ही भारत ने पाकिस्तान से इकहत्तर की लड़ाई जीती थी और बांग्लादेश को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त कराया था। आज उन्ही सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेद जी मानेकशॉ का जन्मदिन है। सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम होर्मूसजी मानेकशॉ और मां का नाम हीराबाई था। जन्म के बाद मां-बाप ने उनका नाम साइरस रखा था। लेकिन उनकी चाची ने सुना था कि जिन पारसियों का नाम साइरस होता है उन्हें जेल भेज दिया जाता है। इसलिए उन्होंने उनका नाम सैम रख दिया. सैम का पूरा नाम सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ था, लेकिन बाद में उन्हें सैम बहादुर के नाम से जाना जाने लगा।
उन्हें साल 1969 में भारतीय सेना का अध्यक्ष बनाया गया था। 1965 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था। तब सैम बहादुर ने ही इंडियन आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के बीच कॉर्डीनेशन बनाकर पाकिस्तान को चारों खाने चित किया था. वह पहले ऐसे आर्मी मैन हैं जिन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया था।
सैम मानेकशॉ एकमात्र ऐसे सेनाधिकारी थे। जिन्हें सेवानिवृत्ति से पहले ही पांच सितारा रैंक तक पदोन्नति दी गई थी। मानेकशॉ के देशप्रेम व देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें वर्ष 1972 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से नवाज़ा गया। इसके अलावा जनवरी, 1973 में उन्हें फील्ड मार्शल का पद दिया गया, और इसी माह वह सेवानिवृत्त हो गए।
आपको बता दे की सैम ने एक इंटरव्यू के दौरान उस वक्त की कुछ बातों को सार्वजनिक किया था। उन्होंने बताया कि पूर्वी पाकिस्तान को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री काफी चिंतित थीं। उन्होंने अप्रैल 27 को एक आपात बैठक बुलाई, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान को लेकर उनकी चिंता साफ जाहिर हुई। उस बैठक में सैम भी आमंत्रित थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम को कहा कि कुछ करना होगा। उनके पूछने पर इंदिरा गांधी ने उन्हें पूर्वी पाकिस्तान में जंग पर जाने को कहा। लेकिन सैम ने इसका विरोध किया।
उन्होंने कहा कि अभी वह इसके लिए तैयार नहीं हैं। प्रधानमंत्री को यह नागवार गुजरा और उन्होंने इसकी वजह भी पूछी। सैम ने बताया कि हमारे पास अभी न फौज एकत्रित है न ही जवानों को उस हालात में लड़ने का प्रशिक्षण है, जिसमें हम जंग को कम नुकसान के साथ जीत सकें। उन्होंने कहा कि जंग के लिए अभी माकूल समय नहीं है लिहाजा अभी जंग नहीं होगी। इंदिरा गांधी के सामने बैठकर यह उनकी जिद की इंतहा थी। उन्होंने कहा कि अभी उन्हें जवानों को एकत्रित करने और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए समय चाहिए, और जब जंग का समय आएगा तो वह उन्हें बता देंगे।
इस वाक्ये को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उनके इस कथन पर प्रधानमंत्री काफी समय तक नाराज रहीं। लेकिन जब फौजियों को एकत्रित करने और प्रशिक्षण देने के बाद वह उनसे मिले तो उनके पास जंग का पूरा खाका तैयार था। इस पर इंदिरा गांधी और उनके सहयोगी मंत्रियों ने सैम से जानना चाहा कि जंग कितने दिन में खत्म हो जाएगी। जवाब में सैम ने कहा कि बांग्लादेश फ्रांस जितना बडा है। एक तरफ से चलना शुरू करेंगे तो दूसरे छोर तक जाने में डेढ से दो माह लगेंगे। लेकिन जब जंग महज चौदह दिनों में खत्म हो गई तो उन्हीं मंत्रियों ने उनसे दोबारा यह सवाल किया कि उन्होंने पहले चौदह दिन क्यों नहीं बताए थे। तब सैम ने कहा कि यदि वह चौदह दिन बता देते और पंद्रह दिन हो जाते तो वहीं उनकी टांग खींचते।
उन्होंने बताया कि जब जंग अपने अंतिम दौर में थी तब उन्होंने एक सरेंडर एग्रीमेंट बनाया और उसे पूर्वी पाकिस्तान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को फोन पर लिखवाया और कहा कि इसकी चार कापी बनाई जाएं। एक काफी जनरल नियाजी को दूसरी प्रधानमंत्री को तीसरी जनरल अरोड़ा को और चौथी उनके आफिस में रखने के लिए। उन्होंने बताया कि जंग खत्म होने पर जब वह लगभग नब्बे हजार से ज्यादा कि पाकिस्तान फौज के साथ भारत आए तो उन्होंने पूरी पाक फौज के लिए रहने और खाने की व्यवस्था करवाई। एक वाकये का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ दिन बाद वह पाक कैंप में फौजियों से मिलने गए जहां कई सूबेदार मेजर रेंक के अफसर थे। उन्होंने उनसे हाथ मिलाया और कैंप में मिल रही सुविधाओं के बारे में पूछा और उनके साथ खाना खाया।
बाद में वह एक सिपाही से मिलने उसके तंबू में गए और उसके आगे हाथ बढ़ा दिया। उसने हाथ मिलाने से इंकार कर दिया। तब सैम ने उससे पूछा कि तुम हमसे हाथ भी नहीं मिला सकते। बाद में वह सिपाही काफी हिचका और हाथ मिलाया। वह बोला साहब मैं अब समझ गया कि आपने जीत कैसे हासिल की। हमारे अफसर जनरल नियाजी कभी हमसे इस तरह से नहीं मिले जैसे आप मिले हैं। वह हमेशा ही अपने गुरूर में रहते थे और हमें कुछ नहीं समझते थे। इतना कहकर सिपाही भावुक हो गया।
दरअसल सैम मानेकशॉ एक ऐसे अफसर थे जो अपने फौजियों को बेहद प्यार किया करते थे और उनकी हर खुशी और दुख में शरीक होते थे। फिर चाहे वह मोर्चे पर हों या कहीं और किसी से मिलने में उन्हें कोई परहेज नहीं था। इसी दम पर वह अपनी फौज में सबके चहेते थे।
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