उत्तर प्रदेश में राजनेताओं पर लगे 20,000 मुकदमे वापसी के फैसले पर योगी सरकार ने काम भी शुरू कर दिया है। आपको बता दे कि सीएम योगी आदित्यनाथ समेत 13 नेताओं के खिलाफ वर्ष 1995 में पीपीगंज थाने में दर्ज मुकदमें को वापस लिए जाने के मामले में राज्यपाल की अनुमति मिलने के बाद प्रशासन ने पहल तेज कर दी है। शासन से पत्र मिलने के बाद जिलाधिकारी ने एडीएम सिटी को शीघ्र कार्यवाही पूरी करने को कहा है।
बता दे कि यह केस गोरखपुर के पीपीगंज थाने में दर्ज है और मामले की सुनवाई स्थानीय कोर्ट में लंबित है। इस मामले में कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ पेश न होने की वजह से गैर जमानती वारंट भी जारी किया था। गोरखपुर के अभियोजन अधिकारी बीडी मिश्रा ने कहा कि इस मामले में सभी आरोपियों के खिलाफ गैरजमानती वारंट के आदेश जारी हुए थे लेकिन उसकी तामिल नहीं हुई थी। गोरखपुर के अपर जिलाधिकारी रजनीश चंद्रा ने भी इस बात की पुष्टि की है कि शासन की तरफ से केस वापसी के लिए आवेदन करने का आदेश आया है। जिसके बाद अभियोजन अधिकारी को संबंधित कोर्ट में आवेदन करने के लिए कहा गया है।
इस विधेयक के लागू होने के बाद प्रदेश के न्यायालयों में सीआरपीसी की धारा 107 (शांति भंग की आशंका) और 109 के तहत लंबित लगभग 20 हजार मुकदमे वापस हो जाएंगे। गौरतलब है कि पहले इस विधेयक में 2013 तक के मामले शामिल किए गए थे, लेकिन संशोधन में समयावधि 31 दिसम्बर 2015 तक बढ़ाई गई है।
वर्ष 1995 में गोरक्षपीठ के तत्कालीन उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ अपने समर्थकों के साथ पीपीगंज क्षेत्र में धरना-प्रदर्शन करने गए थे। तब पीपीगंज में धारा 144 लागू थी। योगी के साथ वर्तमान केंद्रीय राज्यमंत्री शिवप्रताप शुक्ल, विधायक शीतल पांडेय, राकेश सिंह पहलवान, विश्वकर्मा द्विवेदी, कुंवर नरेंद्र सिंह, उपेंद्र दत्त शुक्ल, समीर सिंह, विभ्राट चंद कौशिक, शंभुशरण सिंह, भानुप्रताप सिंह, ज्ञान प्रताप शाही, रमापति राम त्रिपाठी समेत 13 लोगों के खिलाफ पुलिस ने धारा 188 के तहत मुकदमा दर्ज किया था।
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