लखनऊ : समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की निगाहें भाजपा के उन असंतुष्टों पर लगी हैं जो अपने विद्रोही तेवरों से इस बीच सुर्खियों में हैं। भाजपा के कई नेताओं ने इस बीच बागी रुख अपनाया है और दोनों दल इसका आकलन करने में जुटे हैं कि इससे उन्हें राजनीतिक रूप से क्या फायदा हासिल हो सकता है। गौरतलब है कि भाजपा के कई नेताओं के सुर इस बीच बदले नजर आ रहे हैं जिसने पार्टी के रणनीतिकारों की पेशानी पर बल ला दिया है। ऐसे नेताओं के असंतोष को भुनाने के लिए सपा-बसपा दोनों ने तैयारी कर रखी है और कोई आश्चर्य की बात नहीं कि आगे चलकर राजनीतिक रूप से कई उलटफेर देखने को मिलें।
पार्टी का दलित चेहरा बहराइच की सांसद सावित्री बाई फुले ने तो आरक्षण के मसले पर खुलकर अपनी पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी है और राजधानी लखनऊ में रैली करके अपनी ताकत का इजहार भी किया। हालांकि उन्होंने किसी दूसरे दल में जाने की बात नहीं की लेकिन, उनके बयानों से यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए अपनी अलग राह तय कर ली है।
बसपा की निगाहें उनके अगले कदम पर हैैं जो निर्णायक हो सकता है। फुले के अलावा कई और नेता हैं जिन्होंने इस बीच भाजपा के लिए बेचैनी पैदा की है। इनमें इटावा के सांसद अशोक दोहरे भी है। उन्होंने प्रधानमंत्री से मिलकर दलितों के उत्पीड़न की शिकायत की है। दोहरे के इस कदम को भी 2019 के लोकसभा चुनावों के परिप्रेक्ष्य में ही देखा जा रहा है। दोहरे बसपा शासन में मंत्री रह चुके हैं। 2013 में भाजपा में शामिल हुए। इसी तरह राबर्ट्सगंज के सांसद छोटे लाल खरवार ने विद्रोही तेवर अपनाए हैैं। भाजपा के पूर्व सांसद रमाकांत यादव भी पार्टी पर उंगलियां उठा चुके है। इसके अलावा नगर पालिका चुनावों के दौरान भी कई भाजपा नेताओं ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावती रुख अपनाया था।
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