आजकल जिधर देखो उधर महाभियोग प्रस्ताव की ही चर्चा जोरशोर से चल रही है। ….तो आइए जानें महाभियोग प्रस्ताव के बारे में
क्या होता है महाभियोग प्रस्ताव
राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जस्टिस को पद से हटाना बेहद कठिन प्रक्रिया है। इसक मकसद यही है ताकि इन पदों पर बैठे लोग निष्पक्ष होकर काम कर सकें। लेकिन अगर गंभीर आरोपों की वजह से इन्हें हटाने की जरूरत पड़े तो इन्हें सिर्फ महाभियोग प्रस्व पास कराकर ही हचाया जा सकता है।
संविदान के अनुच्छेद 124(4) में जजों के खिलाफ महाभियोग का जिक्र है। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी जज पर साबित कदाचार या अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है।
कितने सांसदो की जरूरत होती है?
नियम के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ महाभियोग लोकसभा या राज्यसभा कहीं भी पेश किया जा सकता है। प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों की जरूरत होती है, लेकिन जज को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव का पास करना जरूरी होता है।
कब पेश किया जा सकता है?
जज के खिलाफ संविधान के उल्लंघन के आरोप या शरीरिक अक्षमता या फिर साबित कदाचार के आरोपों के आधार पर ही उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। जजों पर आरोप के बाद उन्हें पद से हटाने के लिए 3 सदस्यीय जांच समिति बनाई जाती है। इसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज शामिल होते हैं। अगर जांच समिति आरोप को सही पाती है तो कार्रवाई को आगे बढ़ाया जाता है।
क्या हो सकता है असर
संसद के दोनों सदन लोकसभा और राज्यसभा से महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के बाद इस पर राष्ट्रपति की मंजूरी भी जरूरी होती है। हालांकि अभी तक एक बार भी किसी जज पर महाभियोग की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई। जिन न्यायाधीश पर महाभियोग चला उन्होंने प्रस्ताव पास होने के पहलेही इस्तीफा दे दिया। कुछ मामलों में राज्यसभा से प्रस्ताव पास होने के बाद भी ये लोकसभा में पास नहीं हो सका। उससे पहले ही संबंधित जज ने इस्तीफा दे दिया।
किन जजों पर हो चुकी है महाभियोग प्रक्रिया?
इन जजों पर हुई थी महाभियोग प्रक्रिया
1991 :
जस्टिस वी रामास्वामी के खिलाफ प्रस्ताव पेश
लोकसभा में बहुमत की कमी की वजह से प्रस्ताव गिरा
2011 :
जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ प्रस्ताव राज्यसभा में पास
प्रस्ताव के लोकसभा में पास होने से पहले दिया इस्तीफा
2010 :
जस्टिस पीडी दिनाकरण के खिलाफ प्रस्ताव
महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले दिया इस्तीफा
किस-किस के खिलाफ पेश किया जा चुका है?
भारत में महाभियोग की कार्यवाही का पहला मामला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी रामास्वामी का था। उन पर आरोप लगा था कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज रहने के दौरान 1990 में उन्होंने अपने आधिकारिक निवास पर काफी फालतू खर्च किए थे। उनके खिलाफ मई 1993 में लोकसभा मेंं महाभियोग प्रस्ताव लाया भी गया था, लेकिन लोकसभा में इसके सपोर्ट में दो तिहाई बहुमत नहीं होने की स्थिति में यह प्रस्ताव गिर गया।
2011 में कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेने के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। ये प्रस्ताव राज्यसभा में पास भी हो गया था? लेकिन लोकसभा में पास होने से पहले ही सेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसी तरह सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पी डी दिनाकरण के खिलाफ 2009 में राज्यसभामें प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया।
साल 2015 में गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जे बी पार्दीवाला के खिलाफ भी महाभियोग चलाने की तैयारी हुई थी। उनके खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी का आरोप था, लेकिन महाभियोग के नोटिस के कुछ ही समय बाद उन्होंने अपनी टिप्पणी वापस ले ली थी।
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