नई दिल्ली : जो लोग भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और उभरते क्रिकेटर ऋषभ पंत के बीच तुलना करने पर तुले हैं उन्हें शायद यह भी पता नहीं कि धोनी का अनुभव ऋषभ के उम्र से भी ज़्यादा है। उन्हें यह भी जान लेना चाहिए कि इस प्रकार की बेमतलब तुलना से कई उभरते खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ता है और उनकी प्रतिभा बेकार के दबाव और उम्मीदों के बोझ तले दब कर रह जाती है। कुछ साल पहले उन्मुक्त चन्द जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। जहां तक ऋषभ की बात है तो वह माही के नक्शे कदम पर चल रहा है और उन्हें अपना आदर्श मानता है।
वह मात्र 21 साल की उम्र में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में बड़ा नाम बन गया है। 2016 के अंडर 19 वर्ल्ड कप में उसने 18 गेंदों पर 50 रन बना कर खूब वाह-वाह लूटी और इस पारी के बाद वह विश्व क्रिकेट के महान खिलाड़ियों के बीच चर्चा का विषय भी बन गये। शायद यही कारण है कि उन्हें हर एंगल से देखा परखा जाने लगा है। दिल्ली कैपिटल्स और कोलकाता नाइट राइडर्स के बीच खेले गये आईपीएल मुक़ाबले में उनकी आवाज़ माइक में क़ैद क्या हुई कि तमाम क्रिकेट एक्सपर्ट्स और नामी खिलाड़ी अपने-अपने अंदाज में ज्ञान बघारने लगे। उन्होने यह भी नहीं सोचा कि हाल फिलहाल वयस्क हुए इस बच्चे ने पेशेवर और दिखावा क्रिकेट के गुर पूरी तरह नहीं सीखे हैं।
वह भोला भाला है और उसे उस्ताद बनने में भी समय लगेगा। हैरानी वाली बात यह है कि कई पूर्व भारतीय क्रिकेटर और कमेंटेटर गाहे-बगाहे उसकी विकेट कीपिंग पर सवाल खड़ा कर देते हैं और धोनी के साथ तोलने लगते हैं। यही हाल तब होता है जब वह बल्लेबाजी करता है और कम स्कोर पर आउट होता है। यह ना भूलें कि धोनी को भारतीय टीम मे जगह पक्की करने में वक्त लगा था और शुरुआती दिनों में उनकी बल्लेबाजी पर फब्तियां भी कसी गई थीं।
उनकी तुलना में ऋषभ टीम इंडिया की पहली पसंद बन गया है और जब धोनी बस करेंगे तो एकदिवसीय और टी 20 में भी जगह बनाने का दावा पेश कर सकता है। एक विकेट कीपर बल्लेबाज के रूप में वह खुद को साबित कर चुका है। ज़रूरत इस बात की है कि उसे बेकार की तुलना का शिकार ना बनाया जाए। फिलहाल वह आगामी विश्व कप में रिज़र्व विकेट कीपर और मध्यक्रम के बल्लेबाज के रूप में भारतीय टीम में चुना जा सकता है, ऐसा जानकारों का मानना है।
(राजेंद्र सजवान)