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जांच में 2 व्हाट्सएप ग्रुप व 70 एडमिन

जेएनयू में रविवार को हुई हिंसक झड़प मामले में क्राइम ब्रांच के सामने तफ्तीश के दौरान कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।

नई दिल्ली : जेएनयू में रविवार को हुई हिंसक झड़प मामले में क्राइम ब्रांच के सामने तफ्तीश के दौरान कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। सूत्रों की माने तो यह हिंसक घटना पूरी सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी। इस हिंसक घटना को अंजाम देने वालों ने टेक्नोलॉजी का भी भरपूर उपयोग किया। 
उन्हें मालूम था कि वह किस तरह टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए पुलिस से बच सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक घटना से पूर्व कुछ व्हाट्सएप ग्रुप क्रिएट किए गए। इनमें से दो व्हाट्सएप ग्रुप में ही 70 से ज्यादा लोगों को ग्रुप एडमिन बनाया गया था। ऐसे में पुलिस को ना तो ग्रुप क्रिएटर का पता चल पाएगा और ना ही ग्रुप के असली एडमिन के बारे में जानकारी मिल पाएगी। 
व्हाट्सएप से नहीं मिलती पुलिस को मदद
एक तरफ जहां पुलिस अब इन ग्रुपों के असली एडमिन तक पहुंचने के लिए टेक्निकल एक्सपर्ट का सहयोग ले रही है, वहीं साइबर अपराध से जुड़े दिल्ली पुलिस के ही जवानों का कहना है कि व्हाट्सएप के माध्यम से हुए आपराधिक मामलों में पुलिस को व्हाट्सएप कंपनी की तरफ से कभी सकारात्मक सहयोग नहीं मिल सका है। 
दरअसल कंपनी का कहना होता है कि उनका यह सॉफ्टवेयर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बेस्ड है। जिसका डाटा फेसबुक, इंस्टाग्राम व ट्विटर की तरह लंबे समय तक सेव नहीं रह पाता। कंपनी का कहना है कि जब उन्हीं के पास डाटा मौजूद नहीं तो वे उन्हें कैसे दें। 
इसके अलावा ज्यादातर चैटिंग साइट के डोमिन विदेशी हैं। उन पर विदेशी एक्ट ही लागू होता है। ऐसे में दिल्ली पुलिस जब किसी अपराधिक मामले में कंपनी से कुछ डिटेल मांगती है तो वह अपने देश के एक्ट का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेते हैं।
देश की सुरक्षा के लिए भी है खतरा
साइबर एक्सपर्ट सूत्रों का कहना है कि व्हाट्सएप एप ऑनलाइन चैटिंग प्लेटफार्म है। जिसका डाटा कंपनी के पास ज्यादा समय तक सेव नहीं रहता और ऑटोमेटिक डिलीट होता रहता है। यह देश की सुरक्षा की दृष्टि से भी ठीक नहीं और इस संबंध में कोर्ट में भी मामला विचाराधीन है। 
सूत्रों की माने तो जेएनयू में हिंसा की वारदात को अंजाम देने वालों ने इसी बात का फायदा उठाकर वारदात को अंजाम दिया। वारदात से पहले ग्रुप क्रिएट किया गए। जिसमें लोगों को जोड़ने के साथ उन्हें बिना अनुमति के ही ग्रुप एडमिन भी बना दिया गया। 
ग्रुप बनाने वाला जब ग्रुप से बाहर निकल जाता है तो ग्रुप को क्रिएट करने वाले का भी पता नहीं चल पाता, क्योंकि ग्रुप में पहले से ही काफी सारे लोगों को एडमिन होते हैं।
फर्जी नामों से बनाए गए ग्रुप!
पुलिस सूत्रों का कहना है कि जब वारदात को ही पूरी सोची समझी रणनीति के तहत अंजाम दिया गया तो ऐसे में यह पूरी संभावना है कि वारदात से पूर्व जो ग्रुप क्रिएट किए गए वह फर्जी नाम और नंबर पर बनाए गए होंगे। हालांकि क्राइम ब्रांच की टीम इन ग्रुपों में चैटिंग करने वाले नंबरों पर नजर बनाए हुए है। 
जेएनयू हिंसा के दौरान उनकी लोकेशन भी खंगाल रही है। दोनों ही गुट के किसी भी व्यक्ति को पुलिस ने क्लीनचिट नहीं दी है।
आइशी घोष जांच टीम में शामिल नहीं हुई तो निकलेगा अरेस्ट वारंट!
जेएनयू के सूचना प्रणाली केंद्र के सर्वर रूम हुए तोड़फोड़ के मामले में यूनिवर्सिटी प्रशासन ने 4 जनवरी को यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन की अध्यक्ष आइशी घोष के खिलाफ पुलिस को शिकायत दी थी। इस शिकायत पर पुलिस ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था। 
मामले की जांच कर रही क्राइम ब्रांच की टीम उन्हें छह जनवरी तक अपना पक्ष रखने के लिए जांच टीम के समक्ष उपस्थित होने के लिए समन दिया था। लेकिन दो दिन बीतने के बाद भी वह जांच टीम के समझ उपस्थित नहीं हुई। सूत्रों के अनुसार अगर शुक्रवार को भी वह पुलिस जांच में शामिल नहीं होती है तो हो सकता है उनके खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी कर दिया जाए।

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