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शिक्षा से वंचित 31 हजार बच्चे घूम रहे हैं सड़कों पर…

दिल्ली में 30 हजार से अधिक बच्चे निःशुल्क और शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। दुर्भाग्य की बात है स्कूल में पढ़ने की उम्र में बच्चे सड़कों पर घूमने को मजबूर।

नई दिल्ली : दिल्ली में 30 हजार से अधिक बच्चे निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। दुर्भाग्य की बात है कि स्कूल में पढ़ने की उम्र में ये बच्चे सड़कों पर घूमने को मजबूर हैं। दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) की ओर से किए गए सर्वे में सामने आए आंकड़े बेहद दुर्भाग्यपूर्ण व चौंकाने वाले हैं। सर्वे के मुताबिक दिल्ली में 31879 बच्चे ऐसे हैं, जो शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई एक्ट) 2009 के तहत निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा से वंचित हैं और मजबूरन सड़कों पर घूम रहे हैं।

इस पर गंभीरता दिखाते हुए शिक्षा निदेशालय ने इन सभी बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाने का मन बनाया है। शिक्षा निदेशालय के यूनिवर्सल एलिमेंट्री एजुकेशन (यूईई) मिशन कार्यालय ने इस संबंध में जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) को निर्देश जारी कर, बच्चों को उनके घर के पास के स्कूलों में दाखिले की सुविधा प्रदान करने के लिए कहा है। अगर कोई इलाका डीपीओ के अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं तो उस क्षेत्र के संबंधित डीपीओ से बच्चों का विवरण साझा किया जा सकता है। इसके साथ ही बच्चों की सूची को मेल भी किया जा सकता है।

डीसीपीसीआर द्वारा जिलेवार जारी सूची के मुताबिक दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी जिले में सड़कों पर पाए जाने वाले बच्चों की संख्या सबसे अधिक है। यहां 8370 बच्चों की पहचान की गई है। इसी प्रकार पूर्वी जिले में 5481, उत्तर-पश्चिम ए और उत्तर-पश्चिम बी जिले में 3874, दक्षिण-पश्चिम ए और दक्षिण-पश्चिम बी में 3751, सेंट्रल और नई दिल्ली जिले में 3240, उत्तर-पूर्वी में 2957, और पश्चिम ए और पश्चिम बी में 2369 बच्चे सड़क पर घूमने की स्थिति में पाए गए।

एक नजर एक्ट पर… शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई एक्ट) 2009 के तहत 6 से 14 वर्ष तक की आयु के प्रत्येक बच्चे को प्राथमिक शिक्षा पूरी होने तक अपने घर के पास स्थित स्कूल में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। वहीं यह भी प्रावधान है कि सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को कमजोर वर्ग और पिछड़े तबके के 25 फीसदी बच्चों को स्कूल में निःशुल्क शिक्षा देनी होगी। अफसोस कि यह बाते सिर्फ कागजों तक सीमित हैं। वास्तविकता में बच्चों को यह अधिकार मिल ही नहीं पाते हैं।

– दिनेश बेदी

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