नई दिल्ली : अब समय आ गया है कि ऐसा कानून बनाया जाये ताकि देश में जीडीपी का कम से कम 6 प्रतिशत बजट शिक्षा पर रखना अनिवार्य हो। दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने शनिवार को नई शिक्षा नीति पर केन्द्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड की स्पेशल मीटिंग के बाद अपने आवास पर एक प्रेसवार्ता कर उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि आज देश की शिक्षा की सबसे बड़ी समस्या है हाइली रेगुलेटिड-पूअरली फंडिड। नई शिक्षा नीति में इन दोनों ही समस्याओं का कोई समाधान नहीं दिया है।
उन्होंने आगे कहा कि नई शिक्षा नीति में इस बात पर कोई प्रस्ताव नहीं है कि देश के बच्चों की शिक्षा सरकार का काम है। इसके उलट कई ऐसे प्रस्ताव हैं जिनमें प्राइवेट शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। देश में सरकारी स्कूल बंद होते जा रहे हैं और जो चल रहे है उनकी गुणवत्ता पर लोगों का भरोसा कम होता जा रहा है। नई शिक्षा नीति में प्राइवेट शिक्षा बोर्ड बनाने की बात कही गई है जो एक बेहद घातक कदम होगा।
शिक्षा देना सरकार का काम है और शिक्षा बोर्ड भी सरकारी ही होने चाहिए। प्राइवेट स्कूलों को अपना बोर्ड बनाने की इजाजत देना शिक्षा के निजीकरण को और बढ़ावा देगा। सिसोदिया ने कहा कि इसी तरह नई शिक्षा नीति में कॉलेजों को अपनी-अपनी डिग्री देने का अधिकार देने की बात कही गई है। इससे फर्जी डिग्री का धंधा खुले आम चलने लगेगा और हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकेंगे। नई शिक्षा नीति में उद्देश्य चाहे जितने अच्छे लिखे लेकिन क्लास रूम में पढ़ाने का उद्देश्य परीक्षा में पास करवाना ही होता है।
यह इस बात पर निर्भर नहीं करता कि नीति में क्या लिखा है बल्कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि पिछले पांच साल में उस पाठ से क्या-क्या सवाल पेपर ने पूछे गाए हैं। परीक्षा एवं मूल्यांकन प्रणाली में बदलाव किया जाना जरुरी है। नई शिक्षा नीति में केवल ‘रटने की जगह सीखने’ की बात लिख देने या कहने से कुछ बदलेगा नहीं।